जीवन तो पशु-पक्षी भी पूरा करते हैं, परन्तु श्रेष्ठ जीवन उन्हीं का है, जिनका मन वासनाओं से रहित हो गया है। जैसे बोझ ढोने वाले के लिए बोझ दुख का कारण है, वैसे ही अविवेकी मनुष्य का रूप, आयु, मन, बुद्धि, अहंकार और चेष्टा ये सब दुख के हेतु हैं।
जिसका मन शांत नहीं, उसकी आयु सम्पूर्ण दुखों और रोग रूपी पक्षियों की शरण स्थली बन जाती है, किन्तु जो ज्ञानी है उसे सारा जगत ईश्वरमय दिखाई देता है। जिस साधक की वृतियां निर्मल होकर प्रभु की सत्ता में विलीन हो गई है, जो अपने शरीर को दुख-सुख और पीड़ा से प्रभावित नहीं होने देते, उनका मन न दुखी होता है न हर्षित, सदा समता में रहता है।
कल्याण के इच्छुक व्यक्तियों का यह आचरण उन्हें प्रभु के समीप बनाये रखता है। ऐसे आचरणवान व्यक्तियों में तेज, क्षमा, सहनशीलता, धैर्य, बैर-भाव का त्याग, सुख-दुख से निरपेक्षता तथा अहंकार रहित हो जाना जैसे गुण स्वत: ही पैदा हो जाते हैं।