स्वाधीनता के 77 वर्ष बाद भी सनातन धर्म के मानबिन्दुओं, परंपराओं, मान्यताओं और आराध्यों की अवमानना का कुचक्र रुकने का नाम नहीं ले रहा। हाल ही में एक वेब सीरीज रिलीज हुई है जिसमें कंधार विमान अपहरण कांड के आतंकवादियों के नाम ‘भोला’ और ‘शंकर’ रखे गये हैं। विरोध के बाद निर्माता ने नाम बदलने की घोषणा कर दी। लेकिन इस सीरीज ने एक बार फिर सनातन विरोधी मानसिकता को उजागर किया है। सनातन धर्म के प्रतीकों और आस्था स्वरूपों को अपमानित करने का अभियान सल्तनतकाल में आरंभ हुआ था। तब न केवल मंदिर और आस्था के प्रतीकों को ध्वस्त किया गया था अपितु हेयतम प्राणियों के नाम सनातन परंपरा के आराध्यों और अवतारों का नाम पर रख कर परिहास करने के विवरण इतिहास के पन्नों में मिलते हैं। सल्तनतकाल बीता, अंग्रेजीकाल आया। अंग्रेजीकाल में मंदिर, मूर्तियों या अन्य आस्था के प्रतीकों का विध्वंस तो रुका लेकिन अवमानना का कुचक्र यथावत रहा। अब यह बौद्धिक स्तर पर आरंभ हुआ।
अंग्रेजीकाल में इतिहास और साहित्य रचना कुछ ऐसी शैली में हुई जिससे सनातन परंपराएँ और आदर्श के पात्र परिहास अथवा घृणा का कारण बनें। ऐसी कहानियाँ लिखीं गईं, कविता और एकांकी तैयार हुये, कुछ फिल्मों का निर्माण हुआ। इनमें सोच-समझकर ऐसा कथानक तैयार किया गया जिसमें भारतीय मानबिन्दु विवादास्पद बनें अथवा हास्यास्पद ताकि जन सामान्य उनसे दूर हो। कितनी ऐसी फिल्में बनीं जिनमें आदर्श पौराणिक पात्र नारद जी को विदूषक की भाँति प्रस्तुत किया गया। एक फिल्म में नायक शिव मंदिर जाकर भगवान शिव को खरी-खोटी बातें सुनाता है। कितनी फिल्मों में पुजारियों की प्रस्तुति ऐसी हुई है मानों वे ढोंगी और पैसे ठगने वाले हों, अनेक फिल्मों में ठाकुरों को शराबी और शोषण कर्ता जैसी प्रस्तुति हुई। एक फिल्म में बनारस के गंगा घाट के एक पंडा का चरित्र कुछ ऐसा प्रस्तुत हुआ जो पूजा के बहाने श्रद्धालुओं की लूट और हत्या करता है। इन सबका उद्देश्य सनातन समाज को अपने मूल से दूर करना था।
इतिहास और साहित्य में एक ओर सनातन प्रतीकों पर आक्षेपात्मक प्रस्तुतियाँ हुईं। इस सबका उद्देश्य भारत को कमजोर करना था। सल्तनतकाल गया, अंग्रेजीकाल भी गया, लेकिन यह कुचक्र न रुक सका। दीपावली आने पर प्रदूषण बचाने की बात हो, होली पर पानी बचाने का अभियान चले या मंदिरों के स्थान पर अस्पताल बनाने का सुझाव आये। आधुनिकता अथवा मानवीय आदर्श के बहाने केवल सनातन परंपराओं, प्रतीकों और आस्था पर ही प्रश्न उपस्थित होते रहे हैं। इतिहास और साहित्य में एक ओर सनातन प्रतीकों पर आक्षेपात्मक प्रस्तुतियाँ हुई और दूसरी ओर क्रूरतम अपराधियों और आतंकवादियों के कारनामों को ढंकने के प्रयास हुए। वर्ष 1921 में मालाबार में हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार को शोषण के विरुद्ध संघर्ष बताकर हत्यारों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बताने का प्रयास हो या मुम्बई हमला, मालाबार ब्लास्ट आदि घटनाओं में आतंकवादियों के बजाय निर्दोष नागरिकों को फंसाने का कुचक्र भी निरंतर चल रहा है। इसी कुचक्र को आगे बढ़ाने वाली अब एक वेब सीरीज आई है। यह वेब सिरीज वर्ष 1999 के कंधार विमान अपहरण पर आधारित है। वर्ष 1999 में आतंकवादी एक भारतीय विमान का अपहरण करके कंधार ले गये थे। तब इस घटना ने पूरे देश को आक्रांत कर दिया था। विमान का अपहरण करने वाले आतंकवादियों के नाम इब्राहिम अख्तर, शाहिद अख्तर, सनी अहमद, जहूर मिस्त्री और मोहम्मद शाकिर थे। पूरी दुनिया को स्तब्ध करने वाले इस विमान अपहरण कांड पर अब द कंधार ‘ic814’ नामक यह वेब सीरीज तैयार की गई है जो 29 अगस्त को सोशल मीडिया पर देखी गई। इसका निर्देशन अनुभव सिन्हा ने किया है। इस सीरीज में विमान अपहरण करने वाले आतंकियों के असली नाम नहीं दिये गये। उनके स्थान पर अपहरण करने वाले आतंकवादियों के नाम ‘भोला’ और ‘शंकर’ रखे गये हैं। सीरीज की प्रस्तुति ऐसी है, जिसमें ये दोनों अपहरणकर्ता एक-दूसरे को ‘भोला’ और ‘शंकर’ नाम कई बार संबोधित करते दिखाये गये हैं, जबकि मीडिया की खबरों के अनुसार अपहरण के दौरान तब अपहरण कर्ताओं ने एक-दूसरे के नाम नहीं लिये थे, लेकिन इस वेब सीरीज में दोनों अपहरणकर्ता बार-बार एक-दूसरे का नाम ले रहे हैं। सीरीज के सामने आते ही इसका विरोध हुआ। इस विरोध प्रदर्शन के बाद निर्माताओं ने नाम बदलने की घोषणा कर दी। किन्तु यह आश्वासन नहीं दिया कि वे आतंकवादियों के सही नाम देंगे।