नई दिल्ली। बीते दिनों संभल में हुई हिंसा ने अब राष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ लिया है। शीतकालीन सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस मामले को संसद में जोर-शोर से उठाया।
संसद में अपने भाषण के दौरान अखिलेश यादव ने संभल हिंसा को एक सोची-समझी साजिश करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि हिंसा में पुलिस प्रशासन की भूमिका संदिग्ध है और उनके व्यवहार ने जनता के बीच आक्रोश को बढ़ाया। उन्होंने कहा कि इस घटना में पुलिस ने गाली-गलौज की और गोलीबारी की, जिसके परिणामस्वरूप पांच निर्दोषों की जान चली गई।
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अखिलेश यादव ने मीडिया से बातचीत करते हुए पुलिस प्रशासन पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा,”संभल में पुलिस ने जो गालियां दीं, वह बेहद शर्मनाक हैं। मैं वह भाषा इस्तेमाल नहीं कर सकता, क्योंकि वह unparliamentary है।”अखिलेश ने हिंसा में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने और उन्हें निलंबित करने की मांग की।
अखिलेश यादव ने संभल हिंसा की पूरी घटना का ब्योरा देते हुए बताया कि 22 नवंबर को पुलिस ने जामा मस्जिद के पास बैरिकेडिंग कर दी, जिससे जुमे की नमाज में खलल पड़ा। 23 नवंबर को पुलिस ने दोबारा सर्वे की बात कही और 24 नवंबर को जिलाधिकारी और पुलिस अधिकारी सुबह ही पहुंच गए। इसके बाद सर्किल ऑफिसर ने स्थानीय लोगों के साथ गाली-गलौज की और बाद में गोलीबारी की। इस गोलीबारी में पांच निर्दोष लोगों की मौत हो गई। घटना का वीडियो सबूत भी मौजूद है।
अखिलेश ने संसद और मीडिया दोनों के सामने मांग की कि हिंसा के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज हो। जिलाधिकारी और सर्किल ऑफिसर को निलंबित किया जाए। इस घटना की निष्पक्ष जांच की जाए।
अखिलेश यादव के इस आक्रामक रुख के बाद संसद में माहौल गरमा गया। विपक्ष ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की। संभल हिंसा अब सिर्फ एक स्थानीय मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक विषय बन चुका है। सरकार की ओर से अभी तक इस पर कोई ठोस जवाब नहीं आया है, लेकिन अखिलेश के इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है।