Wednesday, November 6, 2024

जयंती 28 सितंबर पर: गांधी चाहते तो बच सकते थे भगत सिंह….प्रतीकात्मक थे भगतसिंह के बम, लेखक व शायर भी थे भगत

भारत की मिट्टी में ही बलिदान के बीज हैं इसमें एक से बढ़कर एक देशभक्त पैदा हुए हैं बलिदानी वीरों में सरदार भगत सिंह का नाम विशेष आभा बिखेरता है और आज भी माताएं भगत सिंह जैसा वीर बेटा जनना चाहती हैं जब भी देश पर कोई आपत्ति आती है तब कहा जाता है कि यह देश भगत सिंह का देश है इस पर हम आंच नहीं आने देंगे । 28 सितम्बर को उन्ही शहीद शिरोमणि भगत सिंह की जयंती है।

1907 में पंजाब के लायलपुर में समाज सुधारक सरदार अर्जुन सिंह, के बेटे सरदार किशन सिंह के घर विद्यावती की कोख से जन्मे ‘शहीद ए आजम’ कहे जाने वाले भगत सिंह के जन्म के समय पिता और दोनों चाचा जेल में थे, इनके पैदा होते ही तीनो छूट गए इस कारण भगत सिंह को परिवार में बड़ा भाग्यशाली माना गया इस कारण दादी जैकौर अपने पोते भगतसिंह को प्यार से ‘भागोवाली कहती थीं।

वेंं चाचा अजीत सिंह और करतार सिंह सराभा को अपना आदर्श मानते थे।
1919 में जलियावाला बाग की घटना से 12वर्षीय?भगत सिंह क्रोध से तिलमिला उठे और घटना के अगले दिन वें स्कूल जाने के बहाने सीधे जलियावाला बाग पहुंचे और खून से लतपथ मिट्टी को एक बोतल में भर लिया वें उस मिटटी पर प्रतिदिन फूल माला चढाते थे।

उच्च शिक्षा के दौरान नेशनल कालेज में भगत सिंह का परिचय उग्र विचारों के सुखदेव, भगवतीचरण वोहरा, यशपाल, विजयकुमार, छैलबिहारी, झंडा सिंह और जयगोपाल से हुआ। सुखदेव और भगवतीचरण भगत सिंह घनिष्ट मित्र थे, भगत सिंह तीनो मित्रों पर समाजवाद और माक्र्स की पुस्तकों का गहरा प्रभाव था। घर वालों के विवाह करने को कहने पर भगत सिंह ने कहा कि उनका विवाह तो आजादी की बलिवेदी से हो चुका है और विवाह की बेडिय़ाँ नहीं पहन सकते।

भगत सिंह के समाजवाद के विचारों से आजाद काद्बक्ती प्रभावित थे जल्दी ही भगत सिंह आजाद के प्रिय बन गए उस समय तक रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्ला खान की शहादत से आजाद टूट से गए थे किन्तु भगत सिंह ने उन्हें हिम्मत दी और अपने मित्रों सुखदेव व राजगुरु से मिलवाया जो कुशल निशानेबाज और बहुत साहसी थे।

लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन के समय लाला लाजपत पर पुलिस अधिकारी स्कॉट के सहयोगी सांडर्स ने लाठी से प्रहार किया जिससे लालाजी के सीने पर गंभीर चोटें आयीं और 17 नवम्बर 1928 को उनकी मृत्यु हो गयी । भगत सिंह, सुखदेव, आजाद और राजगुरु ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध लेने की ठानी, इसके सूत्र धार सुखदेव बने ,भगत सिंह और राजगुरु को स्कॉट को मारने का काम सौंपा गया और चंद्रशेखर आजाद को उन दोनों की रक्षा का 17 दिसंबर 1928 को जयगोपाल के इशारा करने पर भगत सिंह और राजगुरु ने स्कॉट के धोखें में सांडर्स का वध कर दिया, क्योंकि मुखबिरी करने वाले जयगोपाल से पहचानने में चूक हो गयी थी, आजाद ने उन दोनों को घटना स्थल से सुरक्षित निकलने में मदद की। सांडर्स की हत्या ने देश में खलबली मचा दी और पुलिस भगत सिंह, आजाद और राजगुरु को ढूँढने लगी, भगत सिंह ने अपनी दाढ़ी साफ करवा ली और विलायती टोपी ,व ओवरकोट पहन कर लाहौर से सुरक्षित निकल गए।

भगतसिंहं फ्रांस के क्रांतिकारी वेलां से बहुत प्रभावित थे उन्होंने वेलां की तरह संसद में बम फोड़ कर सबको चौंकाने की सोची। आजाद को भी योजना पसंद आई पर वें भगत सिंह को इस काम पर भेजना नहीं चाहते थे किन्तु भगत सिंह की हठ के आगे विवश हो कर स्वीकृति देनी पड़ी। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को संसद में बम फेंकने के बाद स्वयं को गिरफ्तार करवाया ताकि वो मुकदमे के माध्यम से अंग्रेजी हुकूमत का भन्डा फोड़ सकें। उन्होने रक्तपात से बचने के लिए जानबुझकर संसद में खाली जगह बम फेंके और इन्कलाब जिंदाबाद! और साम्राज्यवाद का नाश हो ! के नारे लगाते हुए पर्चे फेंके जिनमे लिखा था -बहरों को सुनाने के लिए लिए धमाके की आवश्कयता होती है ।इस घटना ने सत्ता को हिला कर रख दिया और भगत सिंह और दत्त नौजवानों की प्रेरणा बन गए।

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर मुकदमा चला और मुकदमे में भगत सिंह ने अपना बयान दिया-हमने बम किसी की जान लेने के लिए नहीं बल्कि अंग्रेजी हुकूमत को यह चेतावनी देने के लिए फोड़ा की भारत अब जाग रहा है, तुम हमे मार सकते हो हमारे विचारों को नहीं। भगत सिंह और दत्त के इस बयान ने उन्हें जनता का नायक बना दिया। अंग्रेजों ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को बम फेंकने के अपराध में आजीवन कारावास का दंड दिया। अंग्रेजों ने भगत सिंह और सुखदेव को भी एक दूसरे के खिलाफ भड़काने का प्रयत्न किया लेकिन वें विफल रहे। भगत सिंह को मुकदमे के दौरान देश के युवावर्ग का बहुत समर्थन मिला, बहुत से नेता भी उनके पक्ष में आए लेकिन कांग्रेस एवं गांधी की चुप्पी आज भी रहस्यमय बनी हुई है बहुत संभव है यदि कांग्रेस एवं गांधी भगत सिंह के पक्ष में उठ खड़े होते तो यह बांकुरा बच गया होता।

सरदार भगत सिंह तत्कालीन राजनीति में उग्र विचारों के पक्षधर थे । उनका मानना था कि सदैव प्रार्थना से कार्य नहीं बनता ईंट का जवाब पत्थर से देने पर ही दुश्मन डरता है लेकिन साथ ही साथ वें हिंसा के विरोधी भी थे । संसद में उनका बम फेंकना भी केवल प्रतीकात्मक था जिसका संकेत केवल यही था कि यदि अत्याचार बंद नहीं किए गए तो भारतवासी किसी भी हद तक जा सकते हैं।

आज भगत सिंह को मुख्यत: उनके नारे ‘इंकलाब जिंदाबाद, वीरता एवं उग्र विचारों के लिए अधिक जाना जाता है लेकिन वह एक बहुत अच्छे लेखक भी थे । जेल में रहते हुए ही उन्होंने किताब भी लिखी। यद्यपि लोकतंत्र में बम एवं हिंसा का कोई स्थान नहीं है तथापि कायरता भी अव्यवस्था एवं पतन को जन्म देती है इसलिए आज भारत को विश्व पटल पर भगत सिंह के विचारों को संतुलन के साथ प्रयोग में लाना चाहिए।
-डॉ0 घनश्याम बादल

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