इमरान हाशमी अपनी फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ के जरिए कश्मीर में आतंक के खिलाफ बीएसएफ का सबसे बड़ा मिशन पर्दे पर लाये हैं। फिल्म में उन्होंने बीएसएफ ऑफिसर नरेंद्र नाथ धर दुबे का रोल निभाया है। दो साल के लंबे मिशन के बाद बीएसएफ ने नरेंद्र नाथ धर दुबे की अगुवाई में जैश ए मौहम्मद संगठन के कमांडर गाजी बाबा को ढेर किया था। हाल ही में कश्मीर में तीन दशक के बाद इस फिल्म का प्रीमियर हुआ।
सबसे पहले तो मैं ये जानना चाहूंगा कि आपके लिए ‘ग्राउंड जीरो क्या है? हमारे बीएसएफ के बहादुर जवानों का 50 साल में सबसे महत्वपूर्ण मिशन ग्राउंड जीरो रहा है। हमारे देश के नेशनल सिक्योरिटी, बतौर नागरिक हमारी सुरक्षा
के लिए जरूरी मिशन था। साल 2000 में आतंकवादी संगठन जैश ए मौहम्मद के साथ भिड़ंत हुई थी। उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने सिचुएशन को रेड अलर्ट बताते हुए सारी ही सिक्योरिटी फोर्स को कहा था कि गाजी बाबा को किसी तरह पकडऩा है।
के लिए जरूरी मिशन था। साल 2000 में आतंकवादी संगठन जैश ए मौहम्मद के साथ भिड़ंत हुई थी। उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने सिचुएशन को रेड अलर्ट बताते हुए सारी ही सिक्योरिटी फोर्स को कहा था कि गाजी बाबा को किसी तरह पकडऩा है।
जैश ए मोह्मद ऑर्गेनाइजेशन को खत्म करना है। तब बीएसएफ ने तय किया था कि किसी भी हाल में गाजी बाबा को पकडऩा है। बतौर एक्टर मुझे फील होता है कि ये पूरी टीम के कंधों पर जिम्मेदारी थी। स्क्रीन पर हम एक ऐसे मोमेंट को दिखा रहे हैं, जो हमारे इतिहास का डिफाइनिंग मोमेंट रहा है। ‘ग्राउंड जीरो हमारे बीएसएफ के जवानों को सिनेमेटिकली रिप्रजेंट कर रही है। ये ऐसी कहानी है, जिसे हर भारतीय को जाननी चाहिए। ये पहली बार है, जब बीएसएफ की शौर्य गाथा दिखाई जा रही है। आपको जब पहली बार इस कहानी के बारे में बताया गया तो क्या फीलिंग थी?
तेजस ने जब पहली बार मुझे ये कहानी सुनाई थी, तब मुझे इसकी ताकत समझ आ गई थी। इसे एक्सेल एंटरटेनमेंट लेकर आ रहा है, तो मैं श्योर था कि किसी भी तरह का दिखावा या बिना मतलब देश भक्ति टोन में पिच नहीं करेंगे। खुशी की बात थी कि तेजस भी फिल्म को इसी विजन से देख रहे हैं। हां, फिल्म को एंटरटेनिंग, ड्रमैटिक होना है। ड्रामा तो असली कहानी में ही है।
फिल्म की कहानी बीएसएफ अधिकारी नरेंद्र नाथ धर दुबे की है। उनकी स्टोरी अपने आप में बहुत फिल्मी है। आपका क्या रिएक्शन था? हां, जब मैं कहानी सुन रहा था, तब मैं बार-बार फैक्ट चेक कर रहा था। मैं राइटर को पूछ रहा था कि क्या सच में ऐसा ही हुआ था। जब ये कहानी लिखी जा रही थी, तब दुबे जी और बीएसएफ के ऑफिसर्स राइटर के
संपर्क में थे। ऐसे में कहानी में सब कुछ फैक्ट चेक और रिसर्च के साथ डाला गया है। लेकिन ये अपने आप में अद्भुत है।
संपर्क में थे। ऐसे में कहानी में सब कुछ फैक्ट चेक और रिसर्च के साथ डाला गया है। लेकिन ये अपने आप में अद्भुत है।
सवाल- बीएसएफ ऑफिसर का रोल निभाना चैलेंजिंग था। आपके लिए प्रोसेस क्या रहा है? मेरा प्रोसेस यही था कि मुझे पूरी शिद्दत के साथ बैक स्टोरी को ऑडियंस के सामने पेश करना है। शुक्रगुजार हूं कि इसमें पूरी टीम, हमारे बीएसएफ के ऑफिसर का बड़ा रोल रहा है। उस पूरे मिशन के दौरान दुबे जी फिजिकली, मेंटली और इमोशनली किस नोट पर थे, मैंने उस बारीकी को समझा। हमने बीएसएफ के ट्रेनिंग कैंप में 15 दिन तक शूटिंग की। हम जवानों के साथ उठते-बैठते थे। बीएसएफ के ऑफिसर्स हमारे शूट पर होते थे और उन्होंने हमें एक-एक चीज सिखाई है। वो किस तरह से सैल्यूट करते हैं, कैप कैसे पहनते हैं, यूनिफॉर्म का डेकोरम क्या होता है। इन चीजों से फिल्म में क्रेडिबिलिटी आई। इनफैक्ट क्लाइमेक्स सीन के लिए उन्होंने असली ग्रेनेड तक दे दिया था।
तीन दशक के बाद कश्मीर में किसी फिल्म का प्रीमियर हुआ। बहुत अच्छा रिस्पांस मिला। आप कैसा फील कर रहे थे?
वो पल आंखें नम करने वाली थी। वहां पर 38 साल बाद मेरी फिल्म की स्क्रीनिंग और रेड कार्पेट इवेंट हुआ। दो दशक पहले वहां किसी थियेटर में बम ब्लास्ट हुआ था। इस पल को आने में लंबा समय लगा। लेकिन अब वहां चीजें काफी बदल गई है। हमने 40 दिन तक श्रीनगर में शूटिंग की, हमें किसी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। वहां के लोग इतने अच्छे हैं और अदब से पेश आए हैं।
वो पल आंखें नम करने वाली थी। वहां पर 38 साल बाद मेरी फिल्म की स्क्रीनिंग और रेड कार्पेट इवेंट हुआ। दो दशक पहले वहां किसी थियेटर में बम ब्लास्ट हुआ था। इस पल को आने में लंबा समय लगा। लेकिन अब वहां चीजें काफी बदल गई है। हमने 40 दिन तक श्रीनगर में शूटिंग की, हमें किसी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। वहां के लोग इतने अच्छे हैं और अदब से पेश आए हैं।
इमरान ग्राउंड जीरो को बनने में 9 साल लग गए। इस दौरान आपके लिए क्या चैलेंजिंग रहा और क्या यादगार था? चैलेंज तो यही था कि आप बीएसएफ के अधिकारी दुबे जी को रिप्रजेंट कर रहे हैं, जो कि एक ज्मिेदारी थी। इसमें पूरी मेहनत और शिद्दत होनी चाहिए। शूटिंग में जाने से पहले प्री प्रोडक्शन का जो काम था, वो बहुत मेहनत का काम था।
सबसे यादगार पल की बात करूं तो शूटिंग शुरू होने से पहले जब हम बीएसएफ के कैंप पर गए थे। वहां हमने उनसे वेपन फायरिंग से लेकर हर चीज की ट्रेनिंग ली। उनकी जिंदगी के बारे में जाना। वो बहुत फायदेमंद रहा क्योंकि फिर हम सब कैरेक्टर में एक तरह से घुस गए थे। ट्रेनिंग कैंप में हमारा बीएसएफ के ऑफिसरों के साथ उठना-बैठना था। उनसे हमने काफी कुछ सीखा।