मेरठ। मेरठ नगर निकाय चुनाव सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 में खतरे की घंटी बजा गए। निकाय चुनाव में बसपा प्रत्याशी चौथे नंबर पर आए हैं। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी पांचवें नंबर पर रहे हैं।
दूसरे नंबर पर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने जिस तरह से मुसलमानी इलाकों में अपनी पैठ बनाई है। वह इन दिग्गज पार्टियों के लिए चिंता का विषय है। मेरठ निकाय चुनाव में एआईएमआईएम की सुनामी में सपा और बसपा बुरी तरह से उड़ गईं। बसपा के दलित और मुस्लिम वोट समीकरण बिखर गए। नतीजा दलितों ने भाजपा की ओर रूख किया और मुसलमानों ने एआईएमआईएम की तरफ।
निगम के अब तक के कार्यकाल में तीन बार बसपा मेयर
मेरठ नगर निगम के अब तक के इतिहास में बसपा इस बार हाशिए पर पहुंच गई। पिछले कुल पांच नगर निगम चुनाव में तीन बार बसपा का मेयर चुना गया था। साल 2017 में बसपा प्रत्याशी सुनीता वर्मा ने भााजपा की कांता कर्दम को हराया था। वहीं इस बार बसपा प्रत्याशी चौथे स्थान पर पहुंच गए। पार्टी के पार्षदों की संख्या इस बार छह पर सिमटी है।
बसपा को मेरठ में अभी तक परंपरागत दलित और मुस्लिम मत जीत दिलवाते रहे हैं। पहली बार 1995 में नगर महापालिका चुनाव में अय्यूब अंसारी जीते। इसके बाद वर्ष 2000 में बसपा से शाहिद अखलाक मेयर बने।
इसके बाद भाजपा की मधु गुर्जर और हरिकांत अहलूवालिया ने जीत हासिल की। जबकि 2017 में फिर से बसपा की सुनीता वर्मा मेयर बनीं थीं। सियासी जानकारों की मानें तो दलित और मुस्लिम समीकरण बसपा को जीत दिलाने में महती भूमिका निभाते रहे।