मुजफ्फरनगर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले 9 साल में भारतीय जनता पार्टी को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनाने का सौभाग्य हासिल कर लिया है और मोदी-योगी अब इतने बड़े ब्रांड हैं कि उनके सामने विपक्ष को 2024 के लोकसभा चुनाव में भी चिंता महसूस हो रही है, ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और खासकर मुजफ्फरनगर में भारतीय जनता पार्टी के जिम्मेदारों ने इस पार्टी को ज़िले में गर्त में पहुंचा दिया है।
मुजफ्फरनगर दंगे के बाद से देश और प्रदेश में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को मुजफ्फरनगर जनपद में इसके जिम्मेदार नेताओं ने इस स्थिति में पहुंचा दिया है कि जिले की छह में से पांच विधानसभा सीट भाजपा हार चुकी है, वहीं ज़िले की 10 निकाय में से 9 भाजपा हार गई है। इनमे मुज़फ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान की अपनी चरथावल विधानसभा की एक मात्र नगर पंचायत में चेयरमैन प्रत्याशी को कमल के निशान पर केवल 76 वोट मिली हैं और उनकी जमानत भी जब्त हो गयी है।
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार के निकाय चुनाव में यह तय किया था कि जिन नगर पंचायतों में भाजपा पहले बेहतर नहीं रही है, वहां भी इस बार पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ा जाएगा। पार्टी का मकसद था कि इन निकायों में भी पार्टी के जनाधार को मजबूत किया जाए लेकिन मुजफ्फरनगर में जिम्मेदारों ने ऐसी स्थिति बना दी कि चरथावल में जहां 18553 में से लगभग 7792 हिन्दू मतदाता हैं वहां बीजेपी प्रत्याशी अजय वर्मा कमल के फूल पर केवल 76 वोट पा सके जबकि निर्दलीय सभासद भी इससे ज्यादा वोट पाते हैं।
विपक्ष द्वारा देश में पिछड़े वर्ग की जातीय गणना का भारतीय जनता पार्टी द्वारा विरोध इसलिए किया जा रहा है कि हिंदू मतों में बंटवारे का विपक्ष का प्रयास विफल हो जाए लेकिन मुजफ्फरनगर में जातीय प्रभाव इतना ज्यादा रहा कि भाजपा के दोनों मंत्री और जिला अध्यक्ष ने अपने ही प्रत्याशी को अधर में अकेला छोड़ दिया। चरथावल नगर पंचायत में भारतीय जनता पार्टी द्वारा सुनार वर्ग से अजय वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया जबकि सामने सत्येंद्र त्यागी, समाजवादी पार्टी के नेता होने के बावजूद भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे, वही सुधीर सिंघल भाजपा से जुड़े होने के बावजूद निर्दलीय अपनी पत्नी को चुनाव लड़ा रहे थे, इसी तरह गौरव त्यागी भी वहां निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। ऐसे में भाजपा नेता इस चुनाव क्षेत्र में जाने से परहेज करते रहे जिसका असर यह रहा कि भाजपा के चेयरमैन प्रत्याशी केवल 76 वोट पर सिमट गए और उनकी जमानत भी जब्त हो गयी। निर्दलीय सुधीर सिंघल की पत्नी मीनाक्षी सिंघल को 3927, सतेंद्र त्यागी को 3265 और गौरव त्यागी को 706 वोट मिली हैं।
मंत्री हो गए जिनके लिए आमने-सामने, उन्होंने ‘समाज’ में निपटा लिया फैसला, पीड़ित अभी भी है असंतुष्ट !
पार्टी आलाकमान के दबाव में सिंबल जरूर दे दिया गया, लेकिन सामने जातीय समीकरण ऐसे बने हुए थे जिसके चलते दोनों मंत्री और जिला अध्यक्ष क्षेत्र से जाने से बच रहे थे। इससे भी ज्यादा शर्म की स्थिति है कि चरथावल में आरएसएस और भाजपा के लंबे समय तक बड़े नाम रहे सुरेंद्र भगत जी, बीजेपी आईटी सेल के जिला सह संयोजक तरुण त्यागी, केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के नजदीकी प्रशांत त्यागी और ओमकार त्यागी जैसे प्रमुख भाजपाई होने के बाद भी भाजपा प्रत्याशी को वार्ड नंबर 5 में 0 वोट मिली।
वार्ड 2 में भी जहां नामित सभासद मिथुन त्यागी, जिला कार्यकारिणी सदस्य अनुज त्यागी, पूर्व सभासद अनिल टांक, मंडल मंत्री राजेंद्र कुमार, महिला मोर्चा की कुसुम बाल्मीकि जैसे दिग्गज भाजपाई नेता रहते हैं, उस वार्ड में भी भाजपा के चेयरमैन प्रत्याशी को केवल 2 वोट ही मिल पाई।
विधानसभा चरथावल से टिकट के दावेदारों में शामिल रहे पूर्व नगर अध्यक्ष रविंद्र बडगूजर, मंडल महामंत्री राधेश्याम खटीक, प्रदीप पाल आदि नेताओं के वार्ड एक में भी केवल 6 वोट ही भाजपा प्रत्याशी को मिली हैं। युवा मोर्चा के पूर्व मंडल अध्यक्ष सचिन शर्मा समेत विनोद आचार्य, रवि कांत त्यागी, विजय त्यागी, पूर्व नगर अध्यक्ष धनंजय त्यागी, पंकज कश्यप मंडल उपाध्यक्ष के वार्ड 4 में भी चेयरमैन प्रत्याशी को केवल 6 वोट मिली। भाजपा के जिला कार्यालय पर कार्य करने वाले उत्कर्ष त्यागी के वार्ड 6 से भी पार्टी प्रत्याशी केवल 3 वोट हासिल करने में सफल रहे हैं जबकि इनके परिवार रिश्तेदारों की इससे कई गुना वोट वहां मौजूद हैं। मंडल अध्यक्ष मनीष गर्ग के वार्ड 10 से भी केवल 7 वोट मिली है।
मुज़फ्फरनगर में बिजली वाले भी नहीं मान रहे ‘सत्ता की धमक’, बड़े बीजेपी नेता के घर की काट दी बिजली !
भाजपा प्रत्याशी अजय वर्मा के वार्ड में उन्हें 32 वोट मिली है जिनमें से 20 वोट तो अजय वर्मा के घर की हैं जबकि इसी वार्ड में राजपाल त्यागी, अभय जैन, सुशील कश्यप, मांगेराम कश्यप, मोहित गर्ग, दिनेश वर्मा, शिव कुमार कश्यप जैसे भाजपा के दिग्गज नेता मौजूद है।
मुज़फ़्फ़र नगरपालिका के चुनाव में इस बार ब्राह्मण समाज का ज्यादातर वोट सपा प्रत्याशी लवली शर्मा के पक्ष में गया है, जिसे लेकर शहर में भाजपाई ब्राह्मण समाज को ‘गद्दार’ की संज्ञा दे रहे हैं। ब्राह्मण समाज का कहना है कि पिछले नगरपालिका चुनाव में अरविंद राज शर्मा की पत्नी सुधा राज शर्मा, जब बीजेपी प्रत्याशी थी तो भाजपा के दिग्गज नेताओं ने उनके स्थान पर कांग्रेस की प्रत्याशी अंजू अग्रवाल का समर्थन किया था और भाजपा सिंबल पर होने के बाद भी उन्हें हरवा दिया था, जिसकी कसक ब्राह्मण समाज में है।
देश में फिर हुई ‘नोट बंदी’, 2000 के नोट हुए बंद, 30 सितंबर तक किये जा सकेंगे बैंक में जमा
ब्राह्मण नेताओं का कहना है कि हमने मुजफ्फरनगर में पिछले चुनाव में मिले धोखे के गुस्से में यदि इस बार भाजपा के खिलाफ वोट दे दिया तो भाजपाई हमें गद्दार बता रहे हैं। ब्राह्मण समाज का कहना है कि हम करें तो ‘कैरेक्टर ढीला’ और यह करें तो ‘रासलीला’। उनका कहना है कि अन्य नगर निकायों में भाजपाइयों ने अपने जातीय प्रतिनिधि को भाजपा के कमल के निशान से ज्यादा महत्व दिया है, तो इस पर भी पार्टी संगठन और नेताओं को सफाई देनी चाहिए।
आपको बता दें कि चरथावल विधानसभा केंद्रीय मंत्री डॉ संजीव बालियान की अपनी विधानसभा है। संजीव विरोधी पिछले विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा के प्रत्याशी सपना कश्यप की हार के लिए संजीव बालियान पर दोषारोपण करते रहे हैं, उनका कहना है कि संजीव बालियान इस सीट पर निकट भविष्य में अपने भाई विवेक बालियान को चुनाव लड़ाना चाहते हैं, जिसके चलते उन्होंने सपना कश्यप की वह मदद नहीं की, जो उन्हें करनी चाहिए थी और जाट मतदाताओं में सपना कश्यप को चुनाव जीते पंकज मलिक के मुकाबले कम वोट मिली हैं, हालांकि भाजपा की प्रत्याशी सपना कश्यप इन आरोपों को नकारती हैं। सपना कश्यप का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में डॉक्टर संजीव बालियान एवं उनके पिता सुरेंद्र सिंह और भाई विवेक बालियान ने उनका पूरी ईमानदारी के साथ चुनाव प्रचार किया है।
आपको यह भी बता दें कि लेकिन इस चुनाव में कपिल देव अग्रवाल तो उद्घाटन करने एक बार जरूर गए लेकिन केंद्रीय मंत्री डॉ संजीव बालियान और जिला अध्यक्ष विजय शुक्ला समेत किसी भी अन्य दिग्गज भाजपाई ने इस क्षेत्र में 1 दिन भी जाकर चुनाव प्रचार नहीं किया, इस पर विजय शुक्ला का कहना है कि चुनाव में कम समय था और पार्टी के दायित्व ज़्यादा थे इस कारण भी चुनाव प्रचार में नहीं जा पाए हैं।