लखनऊ- समाजवादी पार्टी (सपा) ने सोशल इंजीनियरिंग के दम पर उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।
सपा ने राज्य में कुल 80 सीटों में से 37 सीटें जीतीं और देश की तीसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई। धार्मिक मुद्दों के बजाय जातीय गोलबंदी और यादव-मुस्लिम पर कम दांव की रणनीति से सपा को यह सफलता मिली। सपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव बसपा के साथ लड़ा था, तब उसे महज पांच सीटें मिली थीं।
राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विपक्ष के अभियान का नेतृत्व किया। सपा ने गठबंधन के तहत 62 सीटों पर चुनाव लड़ा। 17 सीटें कांग्रेस और एक सीट तृणमूल कांग्रेस को दी। सीट बंटवारे की यह रणनीति काफी कारगर साबित हुई, कांग्रेस के साथ साझेदारी करने के चलते सपा मतदाताओं को यह मनोवैज्ञानिक संदेश देने में सफल रही कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प मौजूद है।
2019 के चुनाव में पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह ही सपा से अलग थे, लेकिन इस बार परिवार की एकजुटता से भी अच्छा संदेश गया। सपा ने प्रत्याशी तय करने में पीडीए फार्मूले का भी पूरा ध्यान रखा। अपना आधार वोट माने जाने वाले यादवों और मुस्लिमों से ज्यादा कुर्मी (पटेल) बिरादरी के प्रत्याशी उतारे। ब्राह्मण व ठाकुर समेत सामान्य जाति के प्रत्याशियों को भी प्रतिनिधित्व दिया। अखिलेश का यह दांव बिल्कुल सही बैठा और पार्टी को अप्रत्यशित सफलता मिली।
अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयानों से खुद को और अपनी पार्टी को दूर रखा, बहुत ही सधे अंदाज में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर सीधे कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसी के साथ सपा ने बाबूसिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी से गठबंधन किया और प्रदेश की कई सीटो पर मौर्य प्रत्याशियों पर दांव लगाया और यह फार्मूला सफल रहा। जौनपुर से खुद बाबूसिंह कुशवाहा को चुनाव मैदान मे उतारा और बड़ी जीत हासिल की है, इतना ही नहीं, उन्होने इटावा में विशाल मंदिर का निर्माण प्रारंभ कराया। इससे भाजपा को धार्मिक मुद्दों पर उन्हें घेरने का मौका नहीं मिला, साथ ही जातीय गोलबंदी के लिए संविधान और आरक्षण के मुद्दे को प्रमुखता दी। पेपर लीक और अग्निवीर के सहारे बेरोजगारी की समस्या से बड़ी चोट की। इस रणनीति ने उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचाया।
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गढ़ में साइकिल पूरी गति से दौड़ी। यादवलैंड की छह सीटों में मैनपुरी का रुतबा बरकरार रहा, जबकि सपा ने भाजपा से चार सीटें छीन लीं, सभी सीटों पर वोटबैंक बढ़ाने में भी कामयाब रही, जबकि फर्रुखाबाद में भाजपा तीसरी बार जीत दर्ज कर हैट्रिक लगाने में कामयाब रही, इसी तरह पूर्वांचल में सपा की सोशल इंजीनियरिंग खासी सफल रही और सपा का कद ऊंचा हो गया।
पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव था, ऐसे में भाजपा ने पश्चिम में कब्जा जमाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी यहां जनसभा की और श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा उठाया। इस क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी जनसभाएं कीं, लेकिन सपा ने टिकट बंटवारे में सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस किया। हमेशा भाजपा का साथ देने वाले शाक्य और दोहरे बिरादरी के मतदाताओं को भी पार्टी से जोड़ा, यह कारगर साबित हुआ।