नई दिल्ली। भारत का एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट (एपीआई) मार्केट का आकार 2030 तक बढ़कर 22 अरब डॉलर होने का अनुमान है। यह जानकारी सोमवार को जारी हुई एक रिपोर्ट में दी गई। मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म प्रैक्सिस ग्लोबल एलायंस की रिपोर्ट में कहा गया कि देश का एपीआई मार्केट 8.3 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ रहा है। एपीआई दवाओं में जैविक रूप से सक्रिय घटक हैं जो औषधीय गतिविधि या रोग उपचार में प्रत्यक्ष प्रभाव प्रदान करते हैं।
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उदाहरण के लिए क्रोसिन जैसी सामान्य दवाओं में पेरासिटामोल एपीआई के रूप में कार्य करता है, जो दवा के दर्द निवारक गुणों के लिए सीधे जिम्मेदार होता है। रिपोर्ट में बताया गया कि भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा एपीआई उत्पादक है और बाजार हिस्सेदारी 8 प्रतिशत की है। देश में 500 से ज्यादा अलग-अलग तरह के एपीआई मैन्युफैक्चर किए जाते हैं। प्रैक्सिस ग्लोबल एलायंस में फार्मा और लाइफसाइंसेज के मैनेजिंग पार्टनर मधुर सिंघल ने कहा कि भारत डब्ल्यूएचओ की प्रीक्वालिफाइड सूची में 57 प्रतिशत एपीआई का योगदान देता है।
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एपीआई बाजार 2024 में 18 अरब डॉलर से बढ़कर 2030 तक 22 अरब डॉलर होने की उम्मीद है, जो 8.3 प्रतिशत की सालाना बढ़त को दिखाता है। एपीआई भारत के फार्मास्युटिकल बाजार के एक महत्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। इस सेक्टर की वैल्यू में एपीआई का योगदान लगभग 35 प्रतिशत का है।
सिंघल ने आगे कहा, “दवाओं को बनाने की लागत का औसत 40 प्रतिशत हिस्सा एपीआई ही होता है। हालांकि बाजार की स्थितियों के आधार पर यह आंकड़ा 70-80 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।” सरकार की ओर से फर्मा सेक्टर को बढ़ाने के लिए कई स्कीमें चलाई जा रही हैं। इसमें प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम (2020-30), प्रमोशन ऑफ बल्क ड्रग पार्क (2020-25) स्कीम, फार्मास्युटिकल के लिए पीएलआई स्कीम (2020-29) स्कीम शामिल है।