नई दिल्ली। हर पांच में से करीब तीन भारतीय मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ज्यादातर ‘हिंदुत्व’ और ‘राष्ट्रवाद’ के बारे में है। मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर सीवोटर द्वारा पूरे देश में किए गए एक विशेष सर्वे में यह खुलासा हुआ है। नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनके नेतृत्व में भाजपा ने लोकसभा चुनावों में 282 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया था।
2014 में चुनाव अभियान के दौरान मोदी एक ऐसे नेता के रूप में उभरे, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से एक हिंदू के रूप में अपनी पहचान पर गर्व किया और अपराध भाव से मुक्त राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
इसने भारतीय राजनीति का ध्रुवीकरण किया है और कई आलोचकों ने उनकी नकारात्मक छवि पेश की। इस मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय को छोड़कर, जो मोदी और उनके शासन को बहुत अनुकूल नहीं देखता है, शायद ही कोई बड़ा मतभेद है।
राष्ट्रवाद और हिंदुत्व तब से प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व से जुड़ गया जब से उन्होंने वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। वाराणसी हिंदू धर्म को चिन्हित करने वाले सबसे पुराने और सबसे पवित्र शहरों में से एक है।
शायद एकमात्र बड़ा अंतर राजग और संप्रग के समर्थकों के बीच है। संप्रग के 61 प्रतिशत से अधिक समर्थकों की राय है कि नरेंद्र मोदी सरकार की राजनीति मुख्य रूप से हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के इर्द-गिर्द घूमती है जबकि राजग के लगभग 52 प्रतिशत समर्थकों की भी यही राय है।
संभवत: ऐसा इसलिए है क्योंकि राजग समर्थक मोदी सरकार के मुख्य एजेंडे के हिस्से के रूप में कल्याणकारी योजनाओं का भी हवाला देते हैं। बहरहाल, जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जोर-शोर से शुरू हो गया है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर पूरा हो गया है।
उज्जैन महाकाल मंदिर में नए ढांचे बनकर तैयार हो गए हैं और कई धार्मिक पर्यटन यात्राएं शुरू की गई हैं। उनके शासन काल में पश्चिम एशिया के कई देशों में भी हिन्दू मन्दिर खोले गए हैं।