मेरठ। आज पसमांदा मुसलमानों ने मौलाना रहमान की याद में एक कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें मौलाना अतीकुर रहमान अरबी के चित्र पर पुष्प अर्पित किए और उनके जीवनी पर प्रकाश डाला। मौलाना रहमान ने अपने दोनों बेटे के नाम हिंदू नाम रखे थे।
इस दौरान वक्ता लियाकत ने कहा कि मौलाना अतीकुर रहमान अरवी पसमांदा मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते थे। उनके खिलाफ विरोध करने वालों ने मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व किया था। मौलाना अतीकुर रहमान अरवी का जन्म बिहार के डेहरी ऑनसोन में हुआ था। लियाकत ने कहा कि अतीकुर रहमान ने अपनी प्राथमिक शिक्षा मदरसा मोइनुल गुरबा में प्राप्त की। इसके बाद उच्च शिक्षा दारुल उलूम देवबंद से प्राप्त की। देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए, उन्होंने बिहार के छोटे शहरों और कस्बों से गोरखपुर, बनारस, देहरादून, लाहौर, कराची और पेशावर तक का दौरा किया। शिक्षक सलीम ने कहा कि उन्होंने देशभर में घर-घर जाकर स्वतंत्रता संग्राम के भाषण दिए। बाद में उन्हें अंग्रेजों ने देहरादून में गिरफ्तार कर लिया और लाहौर जेल भेज दिया। जेल से बाहर आने के बाद मौलाना आरवी वापस बिहार आ गए और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लोगों को लामबंद करने लगे। उनके करीबी साथियों में जयप्रकाश सिंह, गुदरी सिंह यादव और जगदीश साव शामिल थे।
बताया कि 1937 में, मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण के लिए एक प्रस्ताव पारित किया और मुसलमानों से पाकिस्तान दिवस को धूमधाम से मनाने के लिए कहा। हालांकि, मौलाना अरवी जैसे सच्चे राष्ट्रवादी ने इसका कड़ा विरोध किया और जिन्ना के दो राष्ट्र सिद्धांत को तोड़ दिया। उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि इस्लाम भी धर्म के आधार पर देश के विभाजन की अनुमति नहीं देता है। गंगा जमुनी तहजीब और हिंदुस्तान की अवधारणा में एक सच्चे आस्तिक होने के नाते, मौलाना अरवी ने अपने दो बेटों को मोहनलाल और सोहनलाल के रूप में उपनाम दिया। उनको आज भी समाज में ऊंचा दर्जा दिया गया है।