मिसेज शर्मा आज बहुत दिनों बाद पार्क में आई थीं। मिसेज़ साहा और चौधरी को देखकर वे उछल पड़ी और फिर जब तीनों ने मिलकर जो बातों का सिलसिला शुरू किया, वह शाम ढले तक खत्म ही नहीं हो रहा था। बातों का टॉपिक वही पुराना, उनके अपने बच्चे। मिसेज शर्मा के अनुसार उनका राहुल तो उनकी बात सुनता ही नहीं है। टी. वी. पर से तो उसकी आँखें हटती ही नहीं।
उनकी बात से सहमत मिसेज़ साहा ने भी झट शुरू कर दी अपने सुपुत्र आकाश की परेशानी। उनका कहना था कि वह घर के बने खाने से ऐसे भागता है कि जैसे उसे खाना नहीं बल्कि नीम की पत्तियां खिलाई जा रही हों।
मिसेज चौधरी जो बहुत देर से उन लोगों की प्रॉब्लम सुन रही थीं, उन्होंने भी उतना ही चटपटे और मसालेदार लहज़ा अपनाते हुए अपनी दोनों सखियों को बताया कि उनकी मुस्कान तो इतनी ज्यादा शरारती और उद्दंड है कि उनकी बात अकेले में तो सुनती ही नहीं है और मेहमानों के सामने तो वह बिलकुल ही हाथ से निकल जाती है।
अगर हम जरा सा भी गौर कर के इन तीनों महिलाओं के केस को देखें तो पाएँगे कि इनकी इस समस्या का कारण कहीं न कहीं वे स्वयं हैं। उन्होंने बच्चों की समस्या को अपनी चर्चा का विषय बना रखा है। इस तरह की लम्बी चर्चा से समस्या तो सुलझेगी नहीं, साथ ही बच्चे भी और बिगड़ते जाएंगे। बच्चे की समस्या होने पर आप अगर सूझबूझ से काम लेंगी तो जरूर अपने बच्चे की समस्या हल कर सकेंगी।
बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताइए:-दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में जहां पैसा कमाने के लिए और घर को सुचारू रूप से चलाने के लिए सुबह से शाम तक मां बाप घर में मौजूद नहीं होते, वे घर को या तो अपने बूढ़े मां बाप या किसी आया के हवाले कर निश्चित हो जाते हैं। स्कूल से आकर भी बच्चा बगैर मां के चुपचाप खाना खिलाकर सुला दिया जाता है।
बच्चे को बचपन से ही अपने साथ रहने की आदत डलवाएं । छोटी उम्र में ही अगर आप बच्चे को किसी दूसरे के सुपुर्द करके जाएंगी तो शायद वह नन्हा मासूम धीरे धीरे आपको पहचानने से इंकार कर देगा। उसके पालन पोषण के लिए शुरूआती चार पांच साल बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। अगर आप वर्किंग हैं तो बच्चे के लिए विदऑउट पे लीव भी ले सकती हैं। इससे उसे आपके साथ काफी वक्त मिल जाएगा।
बच्चे को भी बड़ों की भांति इज़्ज़त दें:-बच्चों की बदतमीजी का प्रथम कारण होता है कि उनका मान दूसरों के सामने नहीं रखा जाता।
मेहमानों के समक्ष उनकी मांएं उन्हें बुरी तरफ डांटती डपटती हैं तो भला बच्चा फिर उद्दंड क्यों न बनेगा। बच्चे तो एक कोमल मिट्टी की तरह होते हैं। अगर आप अपने बच्चे की दूसरों के सामने इज्ज़त करेंगी तो यकीनन बच्चा भी बदले में आपको प्यार और सम्मान देगा।
बच्चे के प्रति अपने प्यार को प्रदर्शित करें:- बचपन जैसी नाजु़क सी अवस्था में अगर आप बच्चे को पूर्णत: प्यार और दुलार देंगे तो शायद उसे आपकी जरूरत का आभास भी यदा कदा होता रहेगा। उसके लिए आप कोई भी तरीका जैसे उसे कई आउटडोर घुमा दीजिए या कोई अच्छा सी डिश उसके लिए बना दें। अगर वह घर का बना खाना जैसे दाल, सब्जी आदि में खाने में रूचि न रखता हो तो उसके लिए पिज़्जा, चॉउमिन आदि घर में ही बना कर खिला दीजिए।
बच्चे को बरबाद न करें:- बच्चों को लाड़ प्यार व दुलार आदि जरूर करें पर उसके लिए एक सीमा निश्चित कर लें। यह न हो कि अत्यधिक लाड प्यार से बच्चा बिगड़ न जाए। बच्चा अगर ज्यादा टी.वी देखता हो तो उसे कोई नई चीज सिखाने के लिए भेजें जैसे गायन. नृत्य, आर्ट, पेंटिंग आदि। इससे वह कुछ नई चीज़ें सीख लेगा।
आपकी खुद की कोशिश यह होनी चाहिए कि आप बच्चे के सामने स्वयं टी. वी न देखें। अगर घरों में मांएं ही टी. वी के आगे आँख गड़ाकर बैठेंगी तो बच्चा तो उन्हीं से सीखेगा। सीरियल, फिल्मों आदि का शौक अगर आप रखती हैं तो अपने बच्चे के सामने इस शौक को नहीं अपनाएं तो अच्छा है।
समस्या का समाधान सूझबूझ व धैर्य के साथ करें:- इस तरह की समस्या का समाधान अगर आसान नहीं है तो मुश्किल भी नहीं है। अपने बच्चे को बहुत ही धैर्य के साथ डील करें। ऐसा न हो कि परिस्थितियां आपके हाथ से निकलती जाएं।
उसको अगर आप माडर्न ख्यालात से पालेंगी तो हो सकता है कि आपके यह माडर्न ख्यालात उसे कहीं का न छोड़ें, इसलिए समय रहते एलर्ट रहना ही आपके और आपके बच्चे दोनों के लिए अच्छा होगा।
– तरन्नुम