जो आया है वह जायेगा भी, जो बनेगा वह बिगड़ेगा अवश्य, जो जन्मा है वह मरेगा, यह निर्विवाद सत्य है। फिर आने वाली परिस्थितियों से घबराकर कलंक का टीका क्यों लगवाते हो।
परिस्थितियों में परिवर्तन अवश्य होना है, वे अचल अटल नहीं हो सकती। यह तुम्हारी परीक्षा की घड़ी है। उसके परिणाम आपके विवेक पर निर्भर है।
जिसमें दया नहीं उस धर्म को न माने, जो विद्वान न हो उसे अपना गुरू न मानो, जिसमें अधिक क्रोध हो उसे अपना साथी न माने, जिनमें प्रेम और सम्मान का भाव नहीं, जिन्हें मित्रता के मूल्य का ज्ञान नहीं उन्हें कभी अपना मित्र और प्रिय न माने। हमारा समय कैसा है, कौन हमारे मित्र हैं, कौन हमारे शत्रु हैं, हमारा निवास स्थान कैसा है, हमारी आय क्या है, व्यय क्या है? हमारी शक्ति कितनी है, उन्हीं के अनुसार अपने उत्तरदायित्वों को निश्चित करे।
मनुष्य के गुण और गौरव तभी तक रहते हैं, जब तक वह दूसरों से याचना नहीं करता, उसके याचक बनते ही कहां गुण और कहां गौरव। स्वाभिमान तो आहत होगा ही आन-बान-शान भी समाप्त हो जायेगी। जब तक प्राणों पर न बन आये तब तक किसी के सामने हाथ न फैलाये। जो नीति के इन वचनों को याद रखकर जीवन व्यवहार करता है वह कभी असफल नहीं होता।