Tuesday, April 1, 2025

प्रभु को जपने वाला प्रभु सा हो जाए

अनेक योनियों में भ्रमण करके पुण्यों का उदय होने पर यह मानव देह प्राप्त होती है, परन्तु हम अपने जीवन में यह भूले रहते हैं कि यह सर्वश्रेष्ठ योनि हमें क्यों प्राप्त हुई? इस संसार में हमें कुछ सम्बन्ध तो जन्म के साथ ही प्राप्त होते हैं और कुछ सम्बन्ध हमारे द्वारा बनाये जाते हैं। वस्तुत: ये सभी सम्बन्ध सभी रिश्ते सांसारिक हैं।

हम यह भूले रहते हैं कि हमारा सम्बन्ध तो परमपिता परमात्मा से हैं और यह जीवन उस सम्बन्ध को पाने के लिए है। एक परमात्मा ही तो है, जो माता-पिता, संतान, सखा-सहयोगी हर रूप में अपने उपासक के साथ खड़ा रहता है और वह समस्त आशाएं, आकांक्षाएं पूर्ण करने में समर्थ है, सक्षम है।

उसका भंडार इतना विशाल है कि उससे मांगने वाला थक जाता है, किन्तु वह देने वाला दाता नहीं। वह अपार गुणों का स्वामी है, उससे प्रेम करने वाले का जीवन प्रेम से परिपूर्ण हो जाता है।

उपासक याचक के अंतर के सारे विकार मिट कर सहज आनन्द का प्रकाश भर जाता है। परमात्मा सम्बन्ध निभाना जानता है, इसलिए वह विभिन्न रूपों में प्रकट होकर अपने साधक की रक्षा करता है। इस सम्बन्ध की सबसे बड़ी विशेषता है कि परमात्मा अपने साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाले को अपने जैसे गुणों से भरपूर कर देता है। प्रभु को जपने वाला प्रभु सा ही हो जाता है।

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