Friday, November 22, 2024

विपक्ष द्वारा प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का बहिष्कार, भाजपा की मुंह मांगी मुराद ?

अगर आपकी नीति और विचारधारा स्पष्ट न हो तो वही होता है जो कांग्रेस के साथ हो रहा है। कांग्रेस वही कर रही है जो भाजपा उससे करवाना चाहती है। क्या कारण है कि कांग्रेस के फैसलों से भाजपा में लड्डू बंटने शुरू हो जाते हैं। श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का कांग्रेस ने बहिष्कार करने का फैसला किया है, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। कांग्रेस न केवल भाजपा की उम्मीदों पर खरी उतरी है बल्कि हिन्दू संगठनों  ने जैसा सोचा था, उसने वैसा ही किया है।

राम मंदिर के समर्थकों में इस बात को लेकर बहुत गुस्सा था कि जो पार्टी राम मंदिर निर्माण में रोड़े अटका रही थी, उसे क्यों प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में बुलाया जा रहा है। अगर कांग्रेस के नेता इस कार्यक्रम में आने का फैसला करते तो भाजपा और हिंदू संगठनों के समर्थकों में अपने ही लोगों के प्रति नाराजग़ी पैदा हो सकती थी लेकिन कांग्रेस ने उनको बचा लिया । कांग्रेस ने बहाना बनाकर एक सनातन विरोधी  कदम उठाया है। इस कदम से होने वाले नुकसान को कांग्रेस कोई भी बहाना बनाकर रोक नहीं सकती।

जब तक कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों को इस कार्यक्रम के लिये न्यौता नहीं मिला था, तब तक वो शोर मचा रहे थे कि भाजपा नहीं चाहती कि विपक्ष का कोई नेता इस कार्यक्रम में शामिल न हो। वो इसे मोदी सरकार का सरकारी कार्यक्रम घोषित करने पर तुले हुए थे। उनका कहना था कि मंदिर निर्माण की हमें भी बहुत खुशी है और हम चाहते हैं कि इस कार्यक्रम में शामिल हों । भाजपा ने राम मंदिर को अपनी निजी संपत्ति बना लिया है।

वास्तव में मंदिर समिति धीरे-धीरे महत्वपूर्ण व्यक्तियों को निमंत्रण पत्र दे रही थी, इसलिए विपक्ष को अंदाजा ही नहीं था कि उन्हें भी बुलाया जाना है। वो अगर थोड़ा इंतजार करते तो उनके लिये बेहतर होता लेकिन विपक्ष का उतावलापन उनको भारी पड़ गया। मंदिर समिति ने धीरे-धीरे प्रमुख विपक्षी नेताओं को न्योता देना शुरू कर दिया और विपक्ष की मुसीबतें बढ़ती गईं। निमंत्रण मिलने के बाद वामपंथी पार्टियों, ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव ने तो आने से मना कर दिया लेकिन कांग्रेस और अन्य कई विपक्षी नेता दुविधा में फंसे हुए थे कि जायें या न जायें।

अब कांग्रेस ने कार्यक्रम में जाने से मना कर दिया है।प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल न होने की सूचना देते हुए कांग्रेस ने एक पत्र लिखा है। उसने लिखा है कि उसके तीन नेताओं  सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खडग़े और अधीर रंजन चौधरी को राम मंदिर के उद्घाटन का निमंत्रण मिला है। पहली गलती तो यही है कि राम मंदिर का उद्घाटन नहीं हो रहा है। वास्तव में मंदिर का उद्घाटन होता ही नहीं है बल्कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। मंदिर में ऐसे ही किसी मूर्ति को लाकर नहीं रख दिया जाता है। मूर्ति स्थापना की एक पूरी धार्मिक प्रक्रिया होती है।

यही कारण है कि इसी अज्ञानता में विपक्ष अधूरे मंदिर का सवाल उठा रहा है। विपक्ष का कहना है कि अभी पूरा मंदिर नहीं बना है और उसका उद्घाटन किया जा रहा है। मुझे नहीं पता कि विपक्ष अंजाने में ऐसा कर रहा है या जानबूझकर लेकिन उसे पता होना चाहिए कि मंदिर कोई सामान्य आवास या किसी कार्यालय का भवन नहीं है। मंदिर का उद्घाटन नहीं होना है बल्कि रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इसके बाद भक्तजनों के लिये रामलला के दर्शन हेतु मंदिर के दरवाजे खोल दिये जायेंगे।

मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिये गर्भ गृह का निर्माण होना जरूरी है और वो हो चुका है। इस कार्यक्रम का होना यह घोषणा है कि अब भक्त रामलला के दर्शन के लिये अयोध्या आ सकते हैं। रामलला के दर्शन अब टेंट में नहीं करने होंगे। उनके लिए भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है। मंदिर का निर्माण कार्य चलता रहेगा और रामलला की पूजा-अर्चना भी चलती रहेगी। ऐसा ही सभी मंदिरों में होता है। क्या विपक्ष चाहता है कि मंदिर निर्माण वर्षों तक चलता रहे और रामलला टेंट में बैठे रहें। अब राम भक्त ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते और इंतजार करने की कोई जरूरत भी नहीं है। यह तो आप भी जानते हैं कि बहुमंजिला मंदिरों के निर्माण में भूतल के तैयार होने पर मूर्तियों की स्थापना कर दी जाती है। सारी मंजिलों के निर्माण का इंतजार नहीं किया जाता है।

पत्र में कहा गया है कि धर्म व्यक्ति का निजी मामला है और भाजपा इसे राजनीतिक कार्यक्रम बना रही है। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम किसी का निजी मामला नहीं है बल्कि यह धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रम है । इस कार्यक्रम को सिर्फ  धार्मिक कहना भी धर्म का अपमान है। जिस मंदिर के साथ करोड़ो भारतीयों की भावना जुड़ी हुई है, वो किसी का भी निजी मामला नहीं हो सकता। जिन लोगों को कार्यक्रम में बुलाया गया है, उनको व्यक्तिगत हैसियत से नहीं बल्कि उनकी राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक हैसियत के आधार पर बुलाया गया है। विपक्ष का यह सोचना ही गलत है कि राम मंदिर सिर्फ धार्मिक मामला है। कांग्रेस का यह कहना कि वो अधूरे मंदिर में नहीं जायेगी तो भारत में हजारों अधूरे मंदिरों में पूजा आराधना चल रही है, क्या उनमें भक्त जाना बंद कर दें? कई वर्षों तक मंदिर निर्माण चलने वाला है, देखते हैं कि विपक्षी नेता कब तक नहीं जाते हैं।

विपक्ष आरोप लगा रहा है कि भाजपा मंदिर पर राजनीति कर रही है। विपक्ष को जवाब देना चाहिए कि भाजपा दशकों से राम मंदिर निर्माण को अपने घोषणा पत्र में शामिल कर रही है तो क्या तब वो राजनीति नहीं कर रही थी। भाजपा ने इसे कई दशकों से राजनीतिक मुद्दा बनाया हुआ है, इसमें नया क्या है? कांग्रेस के नेता कमलनाथ रामलला के लिए चांदी के तीर भेज रहे हैं तो कांग्रेस को बताना चाहिए कि उनका नेता एक अधूरे मंदिर में चांदी के तीर क्यों भेज रहा है। कर्नाटक सरकार 22 जनवरी को इस खुशी में कार्यक्रम करने जा रही है। क्या कर्नाटक सरकार द्वारा ऐसा किया जाना राजनीति नहीं है।

वास्तव में कांग्रेस और विपक्ष के कई नेताओं ने इस कार्यक्रम में न जाने का फैसला करके भाजपा को उन्हें हिन्दू विरोधी घोषित करने का मौका दे दिया है। अब भाजपा और उसके नेता यह बोल सकते हैं कि विपक्षी दल हिन्दू विरोधी हैं और उन्हें मंदिर निर्माण से दुख हो रहा है। उन्हें हिन्दुओं की खुशी बर्दाश्त नहीं हो रही है। इस कार्यक्रम के बहाने अब भाजपा नेताओं को विपक्ष ने अपनी पुरानी हिन्दु विरोधी गतिविधियों को याद कराने का मौका दे दिया है। कांग्रेस यह भी देखने को तैयार नहीं है कि देश का माहौल क्या है? पूरा देश राममय होता जा रहा है। जैसे-जैसे प्राण प्रतिष्ठा का दिन करीब आता जा रहा है, लोगों की भावनाएं खुलकर बाहर आ रही हैं । 22 जनवरी को मोदी जी ने सभी भारतीयों से दिवाली मनाने की अपील की है और अपने स्थानीय मंदिरों में पूजा-आराधना कार्यक्रम करने का अनुरोध किया है। आप अपने आसपास देखोगे तो पता लग जाएगा कि 22 जनवरी के लिए सभी मंदिरों को तैयार किया जा रहा है। 22 जनवरी को दिवाली मनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी है।

हिन्दू समुदाय की वर्षों पुरानी इच्छा पूरी होने जा रही है। जो रामलला अब तक टेंट में बैठे हुए थे, वो अब भव्य मंदिर में विराजमान होंगे। कांग्रेस और विपक्षी नेताओं को उनकी खुशियों में शामिल होना चाहिए था। कांग्रेस ने इस कार्यक्रम को भाजपा, आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद का कार्यक्रम बता दिया है। इससे कांग्रेस खुद ही संदेश दे रही है कि वो मंदिर विरोधी है और मंदिर निर्माण का श्रेय इन्हीं संगठनों को मिलना चाहिए। कांग्रेस को अपने कार्यकर्ताओं से पूछना चाहिए था कि उसे क्या करना चाहिए तो उसे सही सलाह मिल सकती थी। अखिलेश यादव कह रहे हैं कि जब भगवान बुलाएंगे तो जाएंगे। उन्हें लगता है कि वो इतने बड़े आदमी हैं कि भगवान उन्हें बुलाने के लिये खुद उनके दरवाजे जायेंगे। अगर वो यादव समाज से ही पूछ लेते तो अच्छा होता।

वास्तव में विपक्ष को उसके इस कदम का बहुत भारी राजनीतिक नुकसान होने वाला है। चुनाव में हार-जीत का फैसला फ्लोटिंग वोटर करता है। सिर्फ  इस कदम के कारण फ्लोटिंग वोटर का बड़ा हिस्सा भाजपा के पक्ष में जाने वाला है। जहां तक मुस्लिम समाज के नाराज होने का प्रश्न है तो वो नाराज भी हो गया तो कहां जाएगा?  मुस्लिम समाज भाजपा के साथ तो जा नहीं सकता, लेकिन इन दलों का हिन्दू समर्थक जरूर भाजपा के साथ जा सकता है। इस कार्यक्रम से दूरी बनाकर विपक्ष ने हिन्दू विरोधी होने का ठप्पा खुद ही अपने ऊपर लगा लिया है। इस गलती की सजा कई चुनावों में विपक्ष को भुगतनी पड़ेगी।

अंत में इतना कहा जा सकता है कि अगर विपक्ष को 22 जनवरी को नहीं जाना था तो वो 22 जनवरी के बाद 23 जनवरी को जाने की घोषणा कर सकता था। वो कह सकता था कि उसे मंदिर निर्माण की बहुत खुशी है लेकिन वो भाजपा के कार्यक्रम में शामिल नहीं होना चाहता। इससे वो अपने नुकसान को बहुत कम कर सकता था और अपनी छवि भी बचा सकता था।
-राजेश कुमार पासी

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