Saturday, May 11, 2024

पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को ज्वलंत रखने के लिए आज भी आतंकवादी हरकतें कर रहा है!

मुज़फ्फर नगर लोकसभा सीट से आप किसे सांसद चुनना चाहते हैं |

लगातार दो दिन तक चले राजौरी एनकाउंटर को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। इस एनकाउंटर में सुरक्षा बलों ने 2 आतंकियों को मार गिराया, वहीं 5 जवान शहीद हुए। उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे जहाँ मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने ये बताया कि, राजौरी में मारे गए कुछ आतंकी पाकिस्तान के सेवानिवृत्त सैनिक हो सकते हैं।

सेना ने खुलासा किया है कि, इन आतंकियों द्वारा छुपने के लिए एक छोटी सी गुफा का उपयोग किया जा रहा था। आतंकवादी पाकिस्तानी सेना के विशेष बल के सैनिक हो सकते हैं यह पूछे जाने पर उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा कि कुछ आतंकवादियों के सेवानिवृत्त सैनिक होने का पता चला है। पाकिस्तान विदेशी आतंकवादियों को यहां लाना चाहता है।

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

यहां कोई स्थानीय भर्ती नहीं हुई है। हम विदेशी आतंकवादियों को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने आगे बताया कि, हमने अपने सेना के जवानों को खोया है लेकिन हमने आतंकवादियों को खत्म कर दिया है। हमारे बहादुर सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना प्रशिक्षित विदेशी आतंकवादियों को खत्म करने का काम किया है। यह एक बड़ी बात है। आतंकवादियों के इको-सिस्टम और पाकिस्तान के लिए झटका है।

जानकारी के मुताबिक, इस मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने अफगानिस्तान में ट्रेंड और पाकिस्तान में रहने वाले शीर्ष लश्कर कमांडर क्वारी समेत दो आतंकवादियों को मार गिराया था।  ये राजौरी के ढांगरी और टीसीपी में 10 लोगों की हत्या के लिए भी जिम्मेदार थे।  इसके अलावा कंडी में सुरक्षा बलों पर हमला करने की साजिश भी इन्हीं आतंकवादियों ने रची थी, जिसमें पांच भारतीय जवानों की जान गई थी। लेफ्टिनेंट जनरल द्विवेदी ने कहा कि दो खूंखार आतंकवादियों का मारा जाना क्षेत्र को अस्थिर करने की पाकिस्तान की साजिश के लिए एक बड़ा झटका है।  उन्होंने बताया कि एक साल में दो दर्जन से ज्यादा आतंकवादियों को मार गिराया गया है।

देखा जाय तो पाकिस्तान शुरू से ही अपने अस्तित्व को जम्मू और कश्मीर स्टेट से लिंक कर रहा है। इस बात के बावजूद इसने चार युद्ध भारत के साथ लड़े और चारों में इसे मुंह की खानी पड़ी। इतना ही नहीं, 1971 में इसका डिसमेंबरमेंट भी हो गया जिसमें इसको अपना एक हिस्सा ईस्ट पाकिस्तान खोना पड़ा लेकिन पाकिस्तान की फितरत में बहुत बदलाव नहीं हुआ। सामरिक युद्धों से हार के बाद उसने प्रॉक्सी वॉर का सहारा लिया। जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ पंजाब जैसे बॉर्डर स्टेट में भी लेकिन इसमें भी जब सफलता नहीं मिली, तो वह और भी ऐसे तरीके तलाश कर रहा था जिसे वो जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को ज्वलंत रख सके और उसकी उम्मीदों पर सबसे बड़ा पानी उस समय फिरा जब हिंदुस्तान ने 6 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को स्थायी तौर पर संविधान से हटा दिया।

इसके बाद तो पाकिस्तान को समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करे? उसके बाद उसकी अपनी भी मुसीबतें काफी ज्यादा बढ़ गई हैं। बलूचिस्तान, फ्वाटा, अफगानिस्तान, टीटीपी और इस तरह की ढेर सारी जगहें हैं और लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब हो गई है, वह दाने-दाने को तरस रहा है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल अपने देश की समस्याओं पर लगाने की बजाय एक बार फिर भारत की तरफ फोकस कर रहा है।

यह इसी बात से पता चलता है कि पिछले छह महीने में जो घटनाएं जम्मू-कश्मीर में घटी हैं, उसमें हिंदुस्तानी फोर्सेस को कम से कम तीन-चार मौकों पर काफी बड़ी शहादत देनी पड़ी है और इस प्रोसेस में ढेर सारे फॉरेन टेररिस्ट शामिल पाए ही गए हैं। दरअसल उसके जो रिटायर्ड फौजी हैं, वो भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। ऐसा वह इसलिए कर रहा है कि शायद उसके पास जो मुजाहिदीन थे, या जो टेररिस्ट जिनको को वो पाल रहा था, वो उतने सफल नहीं रहे थे। इसलिए वो चाहता था कि अपने रिटायर्ड फौजियों को इस्तेमाल करके वह जम्मू-कश्मीर के माहौल को ज्यादा से ज्यादा बिगाड़ सके।

जानकार लोगों का कहना है कि इस सफलता के बावजूद इसके सिक्योरिटी फोर्सेस को इतने से ही संतोष नहीं कर लेना चाहिए क्योंकि आर्टिकल 370 के समाप्त होने के बाद जम्मू और कश्मीर स्टेट में चौतरफा प्रगति हुई जिसमें टूरिज्म और लोगों में सौहार्द बढ़ा । ऐसी घटनाएं होना वहां शुरू हुई जो न सुनी गई थी, न देखी गई थी कई एक दशकों से। ऐसे में पाकिस्तान की बौखलाहट अपने आपमें समझी जा सकती है।

और अब चूंकि तालिबान का शासन है अफगानिस्तान में, तो जो टेररिस्ट ऑर्गेनाइजेशंस अफगानिस्तान से संबंध रखते हैं वो अब वहां से भारत की तरफ रुख कर रहे हैं क्योंकि अफगानिस्तान में तो ऑलऱेडी एक टेररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन का शासन चल रहा है। यहां पर इस व्यक्ति का मारा जाना तो इंपॉर्टेंट है ही लेकिन इससे समस्या खत्म नहीं होगी। सेना को  देखना ये है कि इस तरह की सोच वाले जितने लोग हैं, उनको जल्दी से जल्दी समाप्त किया जाए और समाप्त ऐसे तरीके से किया जाए जिसमें अपने सिक्योरिटी फोर्सेस का जिस तरह से नुकसान हुआ है राजौरी में या इसके पहले भी कोकरानाग में, उस तरह का नुकसान न हो।

उसके साथ हमारी सेना को खास यह भी देखना है कि अपने नुकसान को पूरी तरह बचाते हुए हम पाकिस्तान से भेजे गए टेररिस्ट को कितना बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं क्योंकि वहां के जो टेररिस्ट हैं, उनकी दोतरफा पॉलिसी रही है। एक तरफ तो वो माइग्रेंट पॉपुलेशन को टारगेट कर रहे हैं ताकि उनके अंदर दहशत का माहौल हो और वहां की आम जनता उनकी सपोर्ट में रहे और दूसरा जो एक नया ट्रेंड उभरा है, वो है कि वहां के सिक्योरिटी फोर्सेस को एक ऐसे इलाके में ड्रॉ कर रहे हैं जहां वे पहले से अच्छी जगह में मौजूद रहते हैं और वो फायर फाइटिंग में सिक्योरिटी फोर्सेस को भी काफी नुकसान मिल रहा है। सिक्योरिटी फोर्सेस को भी अपनी स्ट्रैटजी को चेंज करना पड़ेगा और जल्दी की बजाय इस तरीके से इन ग्रुपों का सफाया करना पड़ेगा ताकि वो किसी तरह का नुकसान हमारी सेना के लोगों न पहुंचा पाएं।

बताया जाता है कि इस इलाके में जो ये आतंकी बाहर से आए हैं, उसमें तीन एलिमेंट्स काम कर रहे हैं। एक तो जो फॉरेन के टेररिस्ट हैं, जिनको लोकल स्थितियों की उतनी ज्यादा जानकारी नहीं होगी । दूसरे जो टेररिस्ट इंडिया से गए हैं और पाकिस्तान में लगातार लश्कर-ए-तयबा या बाकी ऑर्गेनाइजेशन के अंडर ट्रेंड हो रहे हैं और वो उनको फॉरेन टेररिस्ट को गाइड कर रहे हैं क्योंकि उनको लोकल टेरेन और लोगों का नॉलेज है। तीसरे नंबर में लोकल टेररिस्ट भी हो सकते हैं जो इसमें शामिल हैं। तो इन सबसे जो डिस्टर्बेंस का प्रयास किया जा रहा है, उन सबको शुरू की सफलता तो मिल रही है लेकिन हमें अपनी पूरी स्ट्रैटजी को बदलना होगा।

कभी-कभी क्या होता है कि हम इनको खत्म करने के लिए जब रश करने की कोशिश करते हैं, तो कुछेक मुद्दों और प्रिकॉशंस को पीछे छोड़ देते हैं और कभी-कभी लोकल पॉपुलेशन की सुरक्षा के बारे में भी हमारा एक बहुत बड़ा कंसिडरेशन होता है क्योंकि इंडियन फोर्सेस हमेशा से पॉपुलेशन के साथ रही हैं और इस प्रोसेस में उनका ज्यादा नुकसान न हो, उनके लोग न मारे जाएं, इसकी वजह से भी नुकसान उठाना पड़ सकता है और इसीलिए इंडिया को अपनी स्ट्रैटजी को थोड़ा बदलना पड़ेगा।

गौरतलब है कि आर्टिकल 370 निरस्त होने के बाद जिस तरह से टूरिस्ट की संख्या जम्मू-कश्मीर में बढ़ी है, जिस तरह से वहां जी-20 का इवेंट वहां ऑर्गेनाइज हुआ है, जिस तरह से 50 से ज्यादा देशों के रिप्रेजेंटेटिव वहां आए  और डल लेक में घूमे, जिस तरह से उनका इकनॉमिक डेवलपमेंट हो रहा है। जिस तरह से इन्फ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी बढ़ रही है, उसकी वजह से जो आम जनमानस है, वो अपने विकास के प्रति ज्यादा संवेदनशील है और वह अब पाकिस्तान के बहकावे में नहीं आ रहा है।

तो एक तरफ से उसका जो लोकल सपोर्ट पाकिस्तान का है, वो बहुत ज्यादा घट गया है क्योंकि पाकिस्तान में सिविलियन गवर्नमेंट रहने के बावजूद मूलत: अंदर का शासन वहां की सेना चलाती है, इसलिए वहां के जो रिटायर्ड सैनिक हैं, उनको अच्छी तरह ब्रेनवॉश किया जा सकता है और पाकिस्तान के फायदे की बात कहकर उनको भारत में उलझाया जा सकता है, जो इस समय उनकी कोशिश चल रही है। रिटायर्ड सैनिकों को इस मकसद में शामिल करना उसकी लड़ाई का आखिरी हिस्सा है क्योंकि उनका यह प्रयोग भी असफल हुआ तो उसके लिए जम्मू-कश्मीर का मुद्दा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।

Related Articles

STAY CONNECTED

74,237FansLike
5,309FollowersFollow
47,101SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय