Thursday, May 15, 2025

संयम ही साधना है

संयम के बिना नैतिकता की कल्पना नहीं की जा सकती। संयम तो साधना है। आदमी को जितना सुख प्रिय है, संयम से वैसी प्रीति नहीं करता। कुछ चीजें प्रिय होती हैं, परन्तु हितकर नहीं होगी, कुछ हितकर हैं, परन्तु आवश्यक नहीं कि वे प्रिय हो।

जीवन में कुछ पाना है तो संयम को अपनाना ही होगा, क्योंकि असंयम जितना प्रिय है, उतना हितकर नहीं। हितकर होने पर भी संयम बिल्कुल प्रिय नहीं। यहीं आकर नैतिकता उलझ जाती है। नैतिकता के बिना यदि समाज स्वस्थ नहीं रह सकता तो संयम के बिना नैतिकता भी स्वरूप और सप्राण नहीं रह सकती।

संयम होगा तभी नैतिकता की कल्पना की जा सकती है। आज के युग में मनुष्य में लोभ का संस्कार है, स्वार्थ का संस्कार है, सुख का संस्कार है, जिनके रहते व्यक्ति निश्चित रूप से अनैतिक हो जाता है। मनुष्यत्व से दूर हो जाता है। ये संस्कार संयम प्रधान नैतिकता के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि इन संस्कारों में ऐसी मौलिक वृतियां हैं, जो संयमी को भी असंयमी बना देती है।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

87,026FansLike
5,553FollowersFollow
153,919SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय