नई दिल्ली। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के नागरिकों को 48 घंटे में देश छोड़ने का अल्टीमेटम दिया था। इसी बीच इंटेलिजेंस ब्यूरो ने दिल्ली पुलिस को एक अहम रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें दिल्ली में करीब 5000 पाकिस्तानियों की मौजूदगी का हवाला दिया गया है। रिपोर्ट में मजनू का टीला और सिग्नेचर ब्रिज के नजदीक बने पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी कैंप का भी जिक्र किया गया है, जहां करीब 1500 परिवार सालों से बसे हुए हैं। अब सरकार की सख्ती के चलते इन कैंपों में रहने वाले पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों की चिंताएं काफी बढ़ गई हैं।
खासतौर पर उन लोगों की, जिनका लॉन्ग टर्म वीजा निरस्त हो चुका है या जिनकी नागरिकता प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है। सिग्नेचर ब्रिज के नीचे बने पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी कैंप में दिल्ली पुलिस ने दस्तावेजों की गहन जांच शुरू कर दी है। पुलिस हर परिवार से पासपोर्ट, वीजा और अन्य पहचान से जुड़े दस्तावेज इकट्ठा कर रही है। जानकारी के मुताबिक मजनू का टीला और यमुना खादर क्षेत्र में बसे शरणार्थियों में से आधे से ज्यादा लोगों का लॉन्ग टर्म वीजा वीजा या तो रद्द हो चुका है या समाप्ति की कगार पर है। नागरिकता संशोधन कानून के तहत 2014 से पहले भारत आए शरणार्थियों को तो नागरिकता दी गई थी, लेकिन 2014 के बाद आए परिवारों के लिए अब लॉन्ग टर्म वीजा निरस्त होना एक गंभीर संकट बनता दिख रहा है। बड़ा सवाल यह है कि क्या 5000 पाकिस्तानियों में पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी भी शामिल हैं? फिलहाल इस पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
मजनू का टीला कैंप के प्रधान धर्मवीर और प्रधान सोना दास ने कहा कि वे किसी भी कीमत पर पाकिस्तान लौटना नहीं चाहते। उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले का हवाला देते हुए कहा कि आतंकियों ने लोगों को गोली मारने से पहले उनका नाम और धर्म पूछा था। ऐसे में अगर वे वापस पाकिस्तान लौटते हैं तो उनके जीवन पर भी गंभीर खतरा मंडरा सकता है। प्रधान धर्मवीर ने आईएएनएस से कहा, “हम पाकिस्तान में दुख झेलकर भारत आए हैं। अगर वापस भेजा गया तो हमारी जान को खतरा है। जो लोग गलत तरीके से भारत आए हैं, उनकी जांच होनी चाहिए, लेकिन जो असल में शरणार्थी हैं, उन्हें भारत में रहने का हक मिलना चाहिए।” फिलहाल दिल्ली पुलिस ने शरणार्थी कैंपों में गहन जांच शुरू कर दी है। कैंप के लोग अपने दस्तावेज तैयार कर पुलिस को सौंप रहे हैं। जिनके पास न तो वैध वीजा है और न ही नागरिकता दस्तावेज, उनकी चिंता सबसे ज्यादा बढ़ी हुई है। आधार कार्ड और पहचान पत्र के अभाव में अब कई शरणार्थी असमंजस में हैं कि उनका भविष्य क्या होगा।