शरीर रूपी इंजन को क्रियाशील बनाए रखने के लिए तथा उसके भरपूर विकास, नष्ट होती कोशिकाओं की मरम्मत-वृद्धि आदि के लिए भोजन की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता। इसके बिना मानव जीवन नहीं गुजारा जा सकता किंतु यही भोजन शरीर को रोगग्रस्त करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आज की अधिकांश मानव पीढ़ी किसी न किसी रोग से पीडि़त है। एक बीमारी का इलाज कराने के बाद दूसरी बीमारी सिर उठाने लगती है। अपनी बीमारी का इलाज कराते-करते व्यक्ति काफी पैसा एवं समय खर्च कर देता है, किंतु परिणाम ज्यों का त्यों रहता है। इन सबका कारण हमारा भोजन ही है।
वास्तव में आज के मानव ने अपनी जीभ के स्वाद को उत्तम से अति उत्तम बनाने के लिए हर प्रकार के खाद्य पदार्थ खाना शुरू कर दिया है। आज फास्ट फूड, गरिष्ठ, चटपटे, तले-भुने एवं चिकनाई युक्त खाद्य-पदार्थों का अति मात्रा में उपयोग हो रहा है। स्वाद के वशीभूत खाए गए यही पदार्थ रोगोत्पत्ति के कारण बन जाते हैं।
ये खाद्य पदार्थ भारी एवं अधिक तले-भुने होने के कारण हमारी पाचन क्रिया के अनुकूल नहीं बैठते, फलस्वरूप इनका पाचन ढंग से नहीं हो पाता और वे अपची अवस्था में आंतों में जमा होने लगते हैं। वहां जमा होते-होते वहीं सडऩे लगते हैं और दूषित वायु उत्पन्न कर शरीर के अंगों को क्रमश: रोगग्रस्त करते जाते हैं।
आज के लोगों का कब्ज, अपच, अजीर्ण, बवासीर, भगन्दर, एसीडिटी, उच्च रक्तचाप, सोरायसिस आदि अन्य गंभीर रोगों से घिरे रहने का मूल कारण असंतुलित एवं असंयमित भोजन ही है। जिस प्रकार सड़क पर पड़ा हुआ कूड़ा-कचड़ा कुछ समय बाद सड़-गल कर भयंकर बदबू उत्पन्न करता है और तमाम संक्रमण व बीमारियां फैलाने लगता है, उसी प्रकार यही अप्राकृतिक भोजन भी शरीर के अंदर संचय होकर विष उत्पन्न करता है और तरह-तरह की बीमारियों को पालता-पोसता है।
इसके अलावा अपनी आयु, क्षमता, मात्रा आदि का ध्यान न रखना, हर समय बिना भूख के कुछ भी खाते-पीते रहना, जल्दी जल्दी खाना, खाते वक्त तनाव, व्यापार आदि का चिंतन-मनन करना आदि कारणों में भी भोजन का शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
यदि आप आज के सभी भौतिक सुखों एवं सफलता को पाना चाहते हैं तो तन का निरोगी रहना अत्यंत जरूरी है, क्योंकि निरोगी शरीर में ही स्वस्थ दिमाग का वास होता है। मन ही हमें सफलता और ऊंचाईयों की ओर ले जाता है। यही हमें सफलतादायक विचार प्रदान कर हमें तरह-तरह से सुखी रखता है।
प्रस्तुत हैं भोजन संबंधी कुछ आवश्यक नियम-
आपका भोजन शुद्ध, सात्विक एवं प्राकृतिक हो। उसमें हरी पत्तेदार साग-सब्जियां, मौसमी ताजे फल, सलाद एवं रेशेदार खाद्य पदार्थ हों। प्राकृतिक भोजन संतुलित होता है। इनमें शरीर के नव-निर्माण के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं। रेशेदार भोजन कब्ज नहीं होने देता।
भोजन में ज्यादा खट्टे-मीठे व मिर्च-मसाले वाले खाद्य-पदार्थों का कम से कम सेवन करें। नमक की मात्रा भी न के बराबर रखें। जो पदार्थ पचने में भारी हों या जिनके खाने से आपको पेट में भारीपन एवं बेचैनी अनुभव हो, उनसे सदैव दूर रहें।
शराब, गांजा, कैफीन, अफीम, तम्बाकू, गुटखा, बीड़ी-सिगरेट, चाय-काफी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
ये पदार्थ हमारी मानसिकता को सर्वप्रथम दूषित करते हैं, तत्पश्चात् शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। हृदय रोग, दमा, गुर्दों की बीमारी आदि इन्हीं कारणों से ज्यादा होती हैं।
समोसा, स्नैक्स, चिप्स, बिस्कुट व फास्ट फूड के सेवन से बचें। दर असल ऐसे खाद्य-पदार्थ मैदा व बेसन आदि से बनाए जाते हैं। ये आंतों में चिपक जाते हैं, फलस्वरूप शरीर से बाहर नहीं निकल पाते और पेट में पड़े-पड़े गैस, कब्ज, अपच, एसीडिटी आदि रोग पैदा होते हैं।
भोजन में हरी-ताजी सलाद का अधिकाधिक प्रयोग करें। सलाद के रूप में आप गाजर, टमाटर, प्याज, हरी धनियां मूली आदि का प्रयोग करें। चूंकि ये सब्जियां हैं जिसमें अन्य पोषक तत्वों के अलावा पानी की मात्रा भी प्रचुर रहती है, अत: कब्ज से निजात मिलती है।
सुबह नाश्ते के रूप में अंकुरित दाल, अनाज, दूध, फल आदि लेना हितकारी है। इससे आपका सुबह का स्वल्पाहार हो जाएगा, साथ ही तन-मन को स्फूर्ति भी मिलेगी।
अपनी आयु, पाचन क्षमता एवं शरीर की आवश्यकतानुसार ही भोजन करें। ज्यादा ठूंस-ठूंस कर खाना घातक है। जब भूख लगे, तभी खाना चाहिए। जितना आप अपनी पाचन क्रिया का ख्याल रखेंगे, उतना वह आपका रखेगी।
अति मात्रा में किए गए आहार के संबंध में अष्टरोग हृदय में कहा गया है कि-‘अमिमात्रां पुन: सर्वानाशु दोषान् प्रकोपयेत्Ó यानी अत्यधिक मात्रा में किया गया भोजन त्रिदोषों (वात, पित्त, कफ) को कुपित करने वाला होने से व्यक्ति शीघ्र ही रोगग्रस्त होने लगता है। इसलिए अत्यधिक मात्रा में भोजन नहीं करना चाहिए।
जहां अति मात्रा में भोजन करना हानिप्रद है, वहीं भूख से कम खाना भी अहितकर है। ऐसा करने से दुर्बलता, आलस्य व पाचन-क्रिया क्षीण हो जाती है। मन भी शिथिल होने लगता है।
भोजन करते-करते यदि आपको डकार आ जाए तो आपको तुरंत खाना खाना बंद कर देना चाहिए। डकार आना एक ऐसा संकेतक है जो बताता है कि आपने अपनी भूख के अनुसार भोजन ग्रहण कर लिया है, अत: इसके बाद खाना बंद कर दें।
भोजन हमेशा प्रसन्नतापूर्वक, तनाव मुक्त होकर करना चाहिए। खाते समय बातचीत या किसी विषय पर चिंतन-मनन करना हानिप्रद होता है। खाना खाने के बाद तुरंत मानसिक व शारीरिक श्रम नहीं करना चाहिए। भोजन के तुरंत बाद वज्रासन करना कहीं ज्यादा हितकर है। पाचन क्रिया दुरूस्त रहती हैं। गैस की समस्या से छुटकारा मिलता है।
ह्म् आकाश अग्रवाल