उज्जैन को सभी तीर्थों में प्रमुख और स्वर्ग से भी बढ़कर माना जाता है, क्योंकि यहां 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक दक्षिणमुखी महाकाल ज्योतिर्लिंग, 1 8 शक्तिपीठों में से दो गढ़ कालिका और माता हरसिद्धि का मंदिर हैं। यहां पर श्मशान, ऊषर, क्षेत्र, पीठ एवं वन- ये पांच विशेष संयोग एक ही स्थल पर उपलब्ध हैं।
यह संयोग उज्जैन की महिमा को और भी अधिक गरिमामय बनाता है। सम्राट विक्रमादित्य के काल में उज्जैन के माता मंदिरों का विशेष महत्व रहा हैं। माता हरसिद्धि और गढ़कालिका का उल्लेख जहांं 51 शक्तिपीठ और 18 महाशक्तिपीठ में आता है, वहीं उज्जैन की नगरकोट माता का उल्लेख स्कंद पुराण के अवंतिका खंड के अवंति क्षेत्र महात्म्य में मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार नौ मातिृका देवियों में से सातवीं नगरकोट माता है। नगरकोट माता का मंदिर उज्जयिनी के सप्तसागरों में से एक गोर्धन सागर के पास शहर की उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है।
क्यों कहा जाता है नगरकोट की रानी
नगरकोट की रानी प्राचीन उज्जयिनी के दक्षिण-पश्चिम कोने की सुरक्षा देवी हैं। हालांकि यह यह मंदिर उज्जैन शहर की उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। राजा विक्रमादित्य और राजा भर्तृहरि की अनेक कथाएं इस स्थान से जुड़ी हुई हैं। यह स्थान नाथ संप्रदाय की परंपरा से जुड़ा है। और नगर के प्राचीन कच्चे परकोटे पर स्थित है। इसलिए इसे नगर कोट की रानी कहा जाता है। मंदिर में माता की मूर्ति भव्य और मनोहारी है।
जो भूमि के स्तर से करीब 15 फिट नीचे विराजित है। इस मंदिर में एक काफी गहरा जलकुंड है, जो कि परमारकालीन माना जाता है। इसी कुंड के जल से ही देवी का अभिषेक पूजन किया जाता है। मंदिर में एक अन्य गुप्त कालीन मंदिर भी है, जो कि शिवपुत्र कार्तिकेय का है।
लोक मान्यता: उज्जैन में ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में अन्य माता मंदिरों के दर्शन नगरकोट की रानी माता के दर्शन के बगैर अधूरे माने जाते हैं। इस मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालुओं का तांता लगता है। नवरात्रि में यहां सुबह से लेकर रात तक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। मंदिर में सुबह और शाम के समय भव्य आरती होती है, तो नगाड़ों, घंटियों की गूंज से वातावरण आच्छादित हो उठता है। माता के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। माता के दर्शन से श्रद्धालु अभिभूत हो जाते हैं।
(संदीप सृजन-विनायक फीचर्स)