त्योहार आदि पर लोग वाट्सअप ऐप से बहुत सारे लोगों को एक जैसा मैसेज भेज देते हैं। इसमें भावना का मिश्रण नहीं होता। एक मेकेनिकल क्रिया होती है यह बस। मैसेज रिसीव करने वाले को वो खुशी या अपनत्व नहीं मिलता जो आपके बात करने से मिल सकता है। इसी बहाने एक दूसरे के हाल-चाल जाने जाते हैं, रिश्तों को मजबूत किया जाता है और उन्हें रिचार्ज किया जाता है।
मैसेज से तो यही जाहिर होता है कि आप भी उन कइयों में से एक हैं। आपके वजूद को मैसेज इतने हल्के से छूता है कि उसका छूना न छूना बराबर सा लगता है। आपको यही लगता है कि मैसेज भेजने वाले के लिए आपकी कोई अहमियत ही नहीं। जो लोग अपना मतलब पडऩे और स्वार्थ सिद्धि करने के लिए आपका काफी समय लेने में भी नहीं झिझकते, वे ही मतलब न होने पर महज एसएमएस भेज खानापूर्ति कर लेते हैं।
यह बात भेजने वाला भी समझता है और रिसीव करने वाला भी। ऐसा नहीं है कि एसएमएस बिलकुल वाहियात चीज है। इसकी अपनी उपयोगिता है। तभी इसका इतना चलन इतना बढ़ गया है। रिश्ता निभाने, याद दिलाने का काम यह कम खर्च में करता है। कभी भी कहीं भी इसे पढ़ा जा सकता है।
जिंदगी का खालीपन व सूनापन कुछ तो इससे भरता ही है। अब चूंकि फोन कॉल्स सस्ती हो गई हैं, अच्छा हो आप जहां क्लोज रिश्ते हैं, मैसेज के बजाए फोन से ही विश करके आपसी हालचाल भी लेें। इसमें अपनत्व झलकता है। संवेदना एक्टिवेट होती है। मुरझाते रिश्ते बातचीत की फुहार से फिर हरे-भरे होने लगते हैं। खुशी देकर खुशी मिलती है।
– उषा जैन ‘शीरीं’