Sunday, October 6, 2024

हर मकान घर क्यों नहीं लगता

घर अगर स्वीटहोम हो तो घर के सदस्य खुशी की तलाश में हर समय बौराए नहीं फिरेंगे। घर आपका कंफर्ट जोन होना चाहिए जहां अपनी प्रिय जगह पर बैठकर आप अपने को राजा/रानी समझ सकें। जो आपको रिलेक्स करे जिसके हर कोने से आप अपने को जुड़ा पाएं। घर में मिलनेवाला व्यवहार घर को प्रिय बनाने के लिए अहम है। आपसी विश्वास, समझ घर के सदस्यों में जरूरी है।

घर का मुखिया या गृृहिणी अगर डामिनेटिंग नेचर के हों और अन्य सदस्यों को कठपुतली की तरह नचाएं तो इस तरह के व्यवहार से घर के सदस्यों में धीरे-धीरे असंतोष व्याप्त होने लगता है। वे विद्रोह पर उतर आते हैं। नतीजा होता है घर का विषाक्त वातावरण। इसलिए घर में हर एक को स्पेस और उसके वजूद को सम्मान मिलना चाहिए। घर में प्यार, सम्मान मिलने, उनकी भावनाओं को अन्य सदस्यों द्वारा समझे जाने  पर ही घर में पाजिटिव वाइब्स परस्पर सहयोग, सहानुभूति, त्याग व प्रेम की भावना बढ़ती है और घर की इज्जत बनी रहती है।

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कई घर क्यों इतना स्वागत करने लगते हैं जब कि कई आपको असहज करते कुछ-कुछ खौफ सा जगाते लगते हैं? इसमें दो राय नहीं कि बहुत कीमती नाजुक टूटने वाले सजावटी सामान से सजा घर कभी भी आपका कंफर्ट जोन नहीं बन सकता। बेशक रहते रहते यहां रहने की आदत तो पड़ जाती है लेकिन घर का रिफ्लेक्शन आपके व्यक्तित्व पर झलकने लगता है। आप सहज सरल नहीं रहते। घर की सादगी आपके व्यक्तित्व पर असर डालती है।

सादगी से यह मतलब हर्गिज नहीं कि घर को सजाया ही न जाए। सौंदर्य बोध जीवन को रससिक्त करता है। सजावट बगैर तो घर की खाली दीवारें और खाली कमरा जेल की कोठरी जैसा नजर आयेगा। जरूरी नहीं कि घर महंगी चीजों से सजाया जाए। घर को कम दामों में भी सुरूचिपूर्ण ढंग से सजाया जा सकता है। बस आप में सौंदर्यबोध होना चाहिए।

यह जरूरी नहीं कि घर को शीशे के माफिक चमकाया जाए। कहीं एक तिनका न हो। एक मैगजीन न्यूजपेेपर इधर उधर न रखा रहे। पेड़ पौधों से चूंकि पत्ते झर कर कचरा फैलाते हैं, इसलिए पूरी जगह सीमेंटेड करवा दी जाए। घर को थोड़ा बहुत नेचर से जुड़ा रहने दें। उडऩे दें कुछ पत्ते व बिखरे फूल। नेचरल लुक आपको एट ईज रखता है। हर समय अटेंशन केवल टेंशन ही देगा। जहां पत्नी का सम्मान हो, बुजुर्गों के साथ सहनशीलता और आदर भाव हो, बच्चों को बचपन जीने दिया जाए, ऐसा मकान घर होता है।

जहां अतिथि के आने पर घर वाले उसे आते ही विदा करने के फेर में न पड़ जाते हों, अतिथि देवो भव: न भी मानें तो अतिथि असुर भव: भी न मानकर शक्ति भर उनकी आवभगत खुले दिल से करें, ऐसा मकान घर होता है।

मकान तो बेजान होता है, महज ईंट, पत्थर, सीमेंट, लोहे से बना। उसमें जान डाल उस को घर बनाते हैं घर के लोग, अपनी जीवंतता उसे प्रदान कर। मकान उनसे ऊर्जा ग्रहण कर मुखर हो उठता है। एक खामोश धुन उसमें तरंगित होने लगती है। उसकी खामोशी में भी आवाज होती है। यहां तक कि अकेला व्यक्ति भी उसकी कंपनी में अकेलापन महसूस नहीं करता। सही माने में ऐसा होता है घर।
– उषा जैन शीरीं

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