-के. विक्रम राव
पिछड़े जिले बांदा का गुलाबी गैंग फिर सुर्खियों में है। इस बार सृजनात्मक मकसद के कारण। केनसिंग्टन
रायल बरो (लंदन) के ऐतिहासिक फैशन म्यूजियम ने इस नारी-प्रतिरोधवाली जमात की दलित मुखिया
62-वर्षीया श्रीमती संपत पाल की पीली साड़ी, नारंगी ब्लाउज, चंपई पेटीकोट को मंगवाया गया है।
इन परिधानों को हजारों दर्शनार्थियों हेतु प्रदर्शित किया जाएगा। म्यूजियम क्यूरेटर प्रिया खानचंदानी ने गत
सप्ताह सम्पत को संदेशा भेजा था। संग्रहालय वाले इस इलाके का नाम मलिका विक्टोरिया के पति के
नाम एल्बर्टोपोलिश है। यह सन 1852 में निर्मित हुआ था। कमांडर संपत पाल ने बताया, ‘की ही नहीं
भारत की महिलाओं के संघर्ष का यह अंतरराष्ट्रीय कयाम है।‘
इस गुलाबी गैंग को 14 फरवरी 2006 (वेलेंटाइन डे) पर स्थापित किया गया था। महिलाओं पर व्यापक
घरेलू हिंसा से बचाव, शराबबंदी के पक्ष में, शारीरिक शोषण के विरुद्ध यह पुरजोश मुहिम रही। इस
संगठन के सदस्यों ने दिखा दिया कि नारी एक टहनी है जो झोंके से भले ही झुक जाए पर संकट की
आंधी में भी टूटती नहीं है।
बांदा के ख्यात साहित्यकार नरेंद्र पुंडरीक से काफी जानकारी मिली। वरिष्ठ पत्राकार मोहम्मद हमजा साहब
ने इस महिला विद्रोही पर काफी लिखा है।
महिला सुरक्षा पर सत्तासीनों के उपेक्षापूर्ण नजरिए से वह निराश हैं। मसलन प्रेमी-युगल घर से भाग जाए
तो लड़की को ही दोषी करार दिया जाता है। इस दुबली पतली महिला का बुंदेलखंड में होकर नारी संघर्ष
का अग्रदूत होना ही एक करिश्मा है। चौखट लांघकर हक मांगना शौर्य है।
उनके बारे में सन 2008 में ‘ओह‘ प्रकाशन से फ्रांसीसी भाषा में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी जिसका नाम था ‘मोई, संपत पाल,चीफ डी गैंग एन सारी रोज‘, (अर्थात मैं संपत पाल, गुलाबी साड़ी दल की मुखिया)। एन्ने बरथोड ने
फ्रांसीसी में लिखा था।
पुस्तक के बारे में प्रकाशक ने ‘सम्पत पाल हमारी सहायता कर सकती है‘ शीर्षक से लिखा कि “भारत के
ऊंचे पहाड़ों और बाढ़ग्रस्त मैदानों वाले उत्तर प्रदेश के एक नितांत साधनहीन क्षेत्रा में यह किंवदन्ती चल
निकली कि एक महिला बाहुबलियों के अत्याचारों के सामने अकेली उठ खड़ी हुई है जिसका नाम है
संपत पाल, जो प्रताडि़त पत्नियों, संपत्ति छीन लिए गए लोगों और उच्च वर्ग द्वारा अस्पृश्यता के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रही है।
वह महिला स्वयं साधनहीन गड़रिया जाति की है। क्या ऐसी कोई महिला दबंगों से लोहा ले सकती है? न्याय की इच्छुक एक विद्रोहिणी? यह उसकी कहानी है जो वह यहां बता रही है‘। बचपन में उसके स्कूल भवन के खम्बे की ओट में चोरी से
खड़े होकर शिक्षा पाई क्योंकि वह गरीब थी। बारह वर्ष की आयु में विवाह हो गया।
उसने अपने
ससुरालवालों के अत्याचार का डट कर सामना किया, अपनी एक पड़ोसी स्त्राी की रक्षा की और अपनी
एक सहेली की परिवार से दुखी सहेली की सहायता की किंतु सबसे जोखिम भरा काम था गांव के दबंगों
को चुनौती देना और उनके द्वारा सुपारी देकर पीछे लगाए गए (हिटमैन्स) गुंडों से स्वयं की रक्षा करना।
संपत के संग्राम की शुरुआत भी एक गौरवशाली कथानक है। एक बार एक पुलिसवाले ने उसे गंदी गाली दी
थी। संपत देवी ने उस वर्दीधारी की खोपड़ी ही फोड़ दी।
उसका विरोध उत्पीड़न उसी दिन से आरंभ हो
गया था। एक असहज घटना ने उसके मर्म को आहत कर दिया। सन् 2006 में पड़ोसन सुशीला के पति
प्यारेलाल को अत्तर्रा थाने में जबरन बैठा रखा गया। सम्पत तीन सौ महिलाओं का जत्था लेकर गई उसे
छुड़ा लाई। एकदा उसकी सास ने उसे इस लिए डांट दिया कि भूख लगने पर उसने पति से पहले भोजन
कर लिया था। उसका पति आइसक्रीम का ठेला लगाता था।
संपत तभी नर-नारी समानता की आवाज
उठाती रहीं। एक बार एसडीओ ने बिजली काट दी तो उसके कार्यालय का घेराव कर ताला बंद कर दिया
और बिजली आने पर ही ताला खोला। शराब की दुकानंे भी बंद करवाई। रेलवे टीटी रिश्वत मांग रहा
था। संपत ने इतना हंगामा मचाया कि वह भाग गया। उसने कई लड़कियों को बाल विवाह के चंगुल से
बचाया।
इन सारी घटनाओं को अंजाम देने के लिए संपत ने एक लघु सेना गठित की थी। सभी महिलाएं पीली
साड़ी धारण किए हाथ में लाठी थामे, अन्यायी को घेरती हैं। त्वरित न्याय हासिल करती हैं। इन
सेनानियों की संख्या कई हजारों में है। उनकी सभाएं बरगद के साये तले होती हैं अथवा नुक्कड़ चाय
स्टालों पर। संपत पर एक फिल्म बनी। माधुरी दीक्षित ने उसकी भूमिका निभाई थी। दो डाक्यूमेंट्री
फिल्में बनी है। किम लांगिनतों द्वारा वृतचित्रा ‘पिंक सीरीज‘ (2010) तथा निष्ठा जैन द्वारा ‘गुलाबी
गैंग‘ (2014) में। राजनीति में भी संपत ने रुचि दिखाई। कांग्रेस टिकट पर यूपी विधानसभा का चुनाव
लड़ी थीं। जीत नहीं पाईं। हाल ही में मुख्यमंत्राी योगी आदित्यनाथ ने बांदा की एक जनसभा में संपत
को भाजपा की सदस्यता दिलवाई।
संपत पाल द्वारा महिला सुरक्षा के संघर्ष के ठीक दो वर्ष पूर्व नागपुर (महाराष्ट्र) में ऐसा ही जन संघर्ष
चला था मगर वह हिंसक हो गया। भरत कालीचरण उर्फ अक्कू यादव नामक पेशेवर हत्यारा, बलात्कारी,
लुटेरा, जबरन वसूली करने वाला था। दस वर्ष की बालिका से लेकर अधेड़ महिलाओं के साथ दुष्कर्म का
अपराधी था। हर बार पुलिस की मिलीभगत से अक्कू यादव छूट जाता था। एक बार दो सौ पीडि़त
महिलाओं ने उसे घेरकर पीटा। उसके अंडकोष काट डाले। वह मर गया। सैंकड़ों महिलाओं ने हत्या का
अपराध कबूला। जज किसी को भी दोषी न पा पाये तो सभी अभियुक्त रिहा हो गए मगर संपत पाल ने
कभी भी हत्या नहीं की। प्रतिरोध का अपना तरीका खोज निकाला। सफल रही। जनविरोध की अद्भुत
रीति है। (युवराज)