अयोध्या। अनुष्ठानिक आशीर्वादों संगठनों के समन्वित प्रयास, संतों के निर्देशन व विहिप के माध्यम से एकत्रित समाज की शक्ति के बल पर लोकतांत्रिक तरीके से राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। 77वें संघर्ष के इस आन्दोलन के सेनापति श्रद्धेय अशोक सिंहल ने संचालित किया। यह बातें बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक प्रकाश शर्मा ने साक्षात्कार के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि विहिप का प्रयास यह सिद्ध करता है कि प्रभु की कृपा प्राप्त करके निश्छल और शुद्ध मन से कोई काम किया जाय तो भले ही वह कितना लम्बा चले अन्ततोगत्वा सफलता प्राप्त होती है। विपक्षी पार्टियां कह रही हैं कि राम मंदिर आन्दोलन का उपयोग भाजपा ने अपना हित साधने के लिए किया?
सपा व कांगेस ही नहीं भारत के हर राजनीतिक दल ने राम मंदिर आन्दोलन का उपयोग करने का प्रयास किया है। किसी को लगा कि यह आन्दोलन राष्ट्र की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से उत्पन्न हुआ है। भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण राष्ट्र के मंदिर के निर्माण को आगे बढ़ायेगा। उसने इस आन्दोलन का समर्थन कर सहभाग किया। किसी को लगा रामभक्तों पर गोलियां चलवाकर हम अपनी राजनीतिक दुकान चला सकते हैं तो उसमें लाभ उठाने के लिए मुलायम सरकार ने गोली चलवाई थी। कुछ दलों ने गोली चलाने वालों का समर्थन किया। फल सबको अपने कर्मानुसार मिला है।
राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर सवाल उठ रहे हैं?
धर्म विरोधी शक्तियां रामजन्मभूमि पर हो रहे प्राण प्रतिष्ठा समारोह का विरोध कर रही हैं। उन्हीं शक्तियों ने न्यायालय में भी मंदिर के मार्ग को अवरूद्ध करने का प्रयास किया। इसलिए धीरे-धीरे भारत की राजनीति में यह सब अप्रासांगिक होते चले जा रहे हैं। अगर अभी भी नहीं सुधरे तो भारत की राजनीति से उनका नामोनिशान मिट जायेगा।
राम मंदिर के लिए कौन-कौन से अभियान व आन्दोलन चलाये गये?
सबसे पहले श्रीराम जानकी रथों के माध्यम से हिन्दू समाज का जन जागरण हुआ। इसके बाद राम मंदिर का ताला खोला गया। इसके बाद राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए प्रारम्भ किया गया उसका व्याप्त शिलापूजन राम ज्योति चरण पादुका पूजन के माध्यम से पूरे हिन्दू समाज पर आच्छादित हो गया। इसके बाद मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा प्रारम्भ करने की घोषणा हुई।
तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि अयोध्या में परिंदा पर भी नहीं मार सकता। इस घोषणा को कारसेवकों ने चुनौती के रूप में लिया और लाखों की संख्या में रामभक्त अयोध्या पहुंचे। 30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों ने गुम्बदों पर चढ़कर झण्डे लगा दिये गये। इसके बाद 1992 में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नेतृत्व में 06 दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचे को सदा-सदा के लिए धूल धूसरित कर दिया गया।
रामलला के विग्रह की 23 वर्षों तक जो प्रतीक्षा चली उसके लिए आन्दोलन के साथ-साथ लम्बी न्यायिक प्रक्रिया ने सही दिशा देने का काम किया। जिसके परिणाम स्वरूप आज यह दिन देखने को मिल रहा है। विराट और विशाल राम मंदिर में श्रीराम लला विराजमान होने की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है।
बाला साहब देवरस, रज्जू भैया, आचार्य गिरिराज किशोर, ओंकार भावे को कोई कैसे भूल सकता है। इसलिए 30 अक्टूबर और 02 नवम्बर 1990 है। नवम्बर को बलिदान हुए अनेक कारसेवकों के प्रति पूरा हिन्दू समाज कृतज्ञ है।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाजपा की क्या भूमिका रहने वाली है?
एक सहयोगी के नाते जो भूमिका रहती है उस भूमिका का निर्वहन भारतीय जनता पार्टी करेगी। भाजपा के आहवान पर लाखों कार्यकर्ता आन्दोलन में आये थे। तब के नेतृत्व ने और अब के नेतृत्व ने राम मंदिर आन्दोलन के विषय पर कभी संकोच नहीं किया बल्कि खुलकर और डटकर समर्थन किया। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए ही रथयात्रा निकाली थी।