मेरठ। मेरठ नगर निकाय चुनाव में महापौर सीट पर सपा का पलड़ा हमेशा कमजोर रहा है। मेरठ में आज तक कभी सपा का महापौर नहीं बना। पूर्व महापौर पिछली बार जब चुनाव जीती थीं तो वह बसपा में थीं। बाद में उन्होंने सपा का दामन थामा था। तब मुस्लिमों ने हाथी की सवारी की थी।
साल 2006 में महापौर पद पर सपा समर्थित लीलावती की जमानत जब्त हुई थी। साल 2012 में सपा समर्थित महापौर प्रत्याशी रफीक अंसारी (शहर विधायक) हारे थे। साल 2017 में महापौर प्रत्याशी दीपू मनोठिया महापौर पद का चुनाव हारीं थीं। इस बार महापौर में फिर इतिहास दोहराया गया है।
इस बार नगर निगम चुनाव में अपनी अहमियत दिखाने के लिए सपा के महापौर प्रत्याशी पद पर साइकिल छोड़ मुस्लिमों ने एआईएमआईएम को जमकर वोट किया। नतीजतन, अधिकांश मुस्लिम इलाकों में साइकिल रेंगती नजर आई।
सपा जिलाध्यक्ष जयवीर सिंह का कहना है कि हमसे कहीं चूक हुई है। मुस्लिम वोटों का रुझान ओवैसी की पार्टी की तरफ रहा। समीक्षा की जाएगी कि चूक कहां रही और इसे कैसे दूर किया जा सकता है।
महापौर चुनाव में मिली हार के बाद विधायक अतुल प्रधान का कहना है कि वे अकेले दम पर मजबूती से चुनाव लड़े हैं। जनता का फैसला उन्हें स्वीकार है। उम्मीद से कम वोट मिला। अभी तक जनता के बीच रहे हैं, आगे भी जनता के बीच ही रहेंगे। बड़ी हार का कारण यह भी रहा कि सपा का मुख्य वोट बैंक बिखराव में है। कहीं उन्होंने सपा को वोट किया तो कहीं बसपा को। यहां एआईएमआईएम को। हमें सभी वर्गों और समाज का वोट मिला, मगर कम रह गया। इसके अलावा भाजपा के लोगों ने गुंडई की। बूथ कैप्चरिंग की, जिस कारण इतनी बड़ी जीत उन्हें मिली।