Wednesday, May 8, 2024

कहानी: कभी तुम कभी मैं

मुज़फ्फर नगर लोकसभा सीट से आप किसे सांसद चुनना चाहते हैं |

यह लड़ाई के दिनों की बात है। सविता की शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ था। वह अठारह उन्नीस वर्ष की सुंदर लड़की थी। केसर मिले दूध सी सुनहरी आभा लिए गोरा रंग, सुंदर नयन नक्श कांतिमय दिलकश चेहरा तिस पर हर समय मुस्कुराहट की धूप खिली रहती। उसकी मधुर हंसी की आवाज मंदिर की पावन घंटियों की तरह घर बाहर जहां भी वह जाती सारे वातावरण को मुखरित कर देती।
वह अपनी सास के साथ रोज सुबह शिव मंदिर जाती। सास उसकी नन्हीं बच्ची की तरह देखरेख करती। दो नटखट चुलबुले देवर उसका मन बहलाए रहते।
उसके पति श्याम की खैरियत की दोनों सास बहू रात दिन दुआ करती। हिन्दुस्तान पाकिस्तान में युद्ध खत्म होने में नहीं आ रहा था। रेडियो टीवी अखबार सब जगह युद्ध की ही चर्चा रहती। दोनों बड़े ध्यान से टीवी पर खबरें सुनतीं। सविता पूछती मां युद्ध कब खत्म होगा। मां आंखों में आंसू भर कर बहू को गले लगा लेती। खत्म होगा मेरी बच्ची जल्दी ही खत्म होगा। हमारे देश के बहादुर सिपाही जल्दी ही दुश्मनों को अपनी सीमा में खदेड़ कर अपने अपने घर सकुशल लौटेंगे। फिर एक दिन श्याम की चिट्ठी आई वह जल्दी ही वापिस आ रहा है। युद्ध खत्म हुआ समझो।
पड़ोस की दीपशिखा की आज सगाई थी। दोपहर का खाना निपटा। दोनों लड़कों को होमवर्क करने के लिए कह सास बहू सगाई वाले घर चली आईं।
दरवाजे पर ही दीपशिखा की भाभी रत्ना मिल गई उसके हाथ में दूध का गिलास था जो वह अपने बबलू को पिलाने जा रही थी। ‘आज तो हमारी सविता रानी कहर ढा रही है। श्याम भैय्या होते तो गश खा जाते। चाची बहू को नजर का टीका वीका भी लगा दिया कि नहीं। उसने सविता की सास से हंसते हुए पूछा। फिरोजी रंग की भारी बनारसी साड़ी का पल्ला संभालकर कहा ये देखों उसने माथे पर से बाल एक तरफ कर सास द्वारा लगाया काला टीका दिखाते हुए कहा।
नाच गाने का समां बंधा था सत्या का ‘भर-भर लोटे नहाई पर औरतों ने खूब तारीफ की। रानी ने ऊंची आवाज में शुरू किया।
बन्ने से बन्नी सेजो पे झगड़ी।
तू क्यूं नहीं लाया रे सोने की तगड़ी॥
कमला ने ठप्पेदार साड़ी की फरमाईश करते हुए गाया
साड़ी लइयो ठप्पेदार।
किनारी चौड़ी लइयो॥
बीना सचदेवा ने बन्नी की ससुराल की बखिया उधेड़कर रख दी।
दुनिया से न्यारी बन्नी तेरी ससुराल है
घर में न आटा है न घी है न दाल है
सास तुम्हारी रंग रंगीली पौडर रुज लगाये
ससुर तुम्हारा छोरी समझ के उसके पैर दबाये
देखो कैसा ये कमाल है…
औरतें हंसती ठी…ठी… करती नाच रही थीं। गा रहीं थीं। हरविंदर ने जबर्दस्ती सविता के पैर में घुंघरू बांध दिये। कौन से गाने पर नाचोगी मामी शालू ने पूछा।
‘मेरे पिया गये रंगून किया है वहां से टेलीफून क्यों सविता भाभी ये ठीक रहेगा। इस पर सबने जोरदार ठहाका लगाया अरी लड़कियों कोई फड़कता सा गीत गाओ लौंगी बुआ ने सुझाया।
ओ मेरा बाबू छैल छबीला मैं तो नाचूंगी
ओ मेरा बलमा रंग रंगीला में तो नाचूंगी
कजरा लगा के….
सविता के हाथ पैर रुना लैला की आवाज पर बिजली से थिरकने लगे। पहली ही पंक्ति पर मां ने दस का नोट लहराकर बहू पे वारा फिर तो वारफेर की बाढ़ आ गई। ‘ये हमारी भाभी तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली मामीजी शीला दीदी की बड़ी बेटी ने सविता की सास से उनकी बहू की प्रशंसा करते हुए कहा। सारी लड़कियां  और औरतें मुग्ध होकर उसका पतला दुबला लचीला बदन नाचते थिरकते देख रही थीं। एक गाना खत्म होते दूसरे की फमाईश आ जाती। बस करो लड़कियों, उससे अनगिनत फमाईश पर सास ने कहा, देखती नहीं कितना थक गई है मेरी बहू। बहू के नाच पर सास खुशी से फूली न समा रही थी।
गया-गया री सास तेरा राज
जमाना बहूओं का
हीरादेई ने जब ये गीत छेड़ा तो सविता ने भोलेपन से मुंह फुला लिया। देखो न मां कितना खराब गाना गा रहे हैं। भला सास का राज भी खत्म होता है। ‘अरे बेटी ये तो गाना है, ‘तो क्या हमें नहीं अच्छा लगता ऐसा लड़कियों को बिगाडऩे वाला गाना।
अजी दूसरा कोई और गाना गा लो। हमारी बहू को ये गाना नहीं पसंद। अच्छा जी सास की भगतन नहीं गाते ये गाना। लेकिन ताई क्या करे सास की स्तुति गाने वाला कोई गाना बना ही नहीं।
‘तो कोई फिल्मी ही गा लो न सविता ने चिढ़ते हुए कहा।
ऊपरवाला सबको ऐसा मान देने वाली बहूरानी दे। मन ही मन बहू को ढेरों आशीष देते हुए सास ने प्रार्थना की।
श्याम छुट्टियों में घर क्या आया घर में जैसे बहार आ गई। दोनों छोटे भाई बस स्कूल जाने तक अलग रहते वर्ना भाई का पीछा न छोड़ते। मां जबां दिलों के अरमान और बे ताबियों को समझती थी। वह राहुल, मनीष को डांटती भाई को हर समय तंग मत किया करो उसे आराम करने दो। बहू को भी वे रसोई के काम से छुट्टïी देकर ऊपर श्याम के कमरे में भेज देतीं। बहू थी कि ‘नहीं मां काम खत्म करके सब इकट्ठे बैठेंगेÓ अपनी जिद पर अड़ जाती।
सच पिछले जनम की ये मेरी कोखजायी है। वर्ना मोहल्ले भर में सास को इतना चाहने वाली एक भी बहू नहीं। मोहल्ले क्या मैं तो कहती हूं पूरे शहर में न होगी।
बहू जिस दिन बाल धोती, बड़े अधिकार पूर्वक कटोरी में तेल डालकर सास से कहती चलो मां सब काम छोड़कर पहले मेरे बालों में तेल की मालिश करो। उंगली की पोर से बालों की जड़ों में तेल मालिश करती सास की आंखों से चुपचाप कुछ बूंदें सरक के बहू के बालों में समा जाती। ‘पगली ऐसे मोहजाल में मत फंसा मुझे, कि बिछडऩा मुश्किल हो जाए। उम्र ज्यादा न होते हुए भी पति की मौत के बाद संसार से उनका मन उचट गया था। मन जैसे बुझ गया था। अपने प्रति  बिल्कुल लापरवाह हो गई थी। अच्छा पहनना, ओढऩा, हंसना, बोलना कुछ भी तो नहीं सुहाता था उन्हें। खाने के प्रति भी बिल्कुल अरुचि हो गई थी अक्सर तो वे व्रत उपवास रखतीं।
लेकिन सविता ने तो आकर उनकी दुनिया ही बदल दी। सबसे पहले तो उसने उनकी सफेद साड़ी छुड़वायी। दोनों वक्त गर्म फुल्के खिलानेे में रुचि जगाई। घर में भैंस थी दूध दही की कमी नहीं थी, लेकिन वे थीं कि कभी दूध नहीं पीतीं थीं। बच्चों की तरह बहा फुसलाकर सविता ने सास को एक कप सुबह और एक कप रात को दूध पिलाने का बीड़ा उठाया ‘मैं भी तभी दूध को हाथ लगाऊंगी जब आप पियोगी? सविता की जिद थी।
जीवन में जहां इतने दुख हैं कहीं थोड़ा सुख भी है। और अब श्याम के जाने से पहले जब उन्हें पता चला कि सविता की कोख में नया जीव आ गया है। उन्हें लगा हो सकता है शायद वे ही दुबारा इस घर में जन्म लें, वे अब सविता का पहले से भी ज्यादा ध्यान रखने लगीं। बात बात पर प्यार भरी हिदायतें, न खाने पर स्नेह भरी झिड़कियां। देवर ऐसे कि भाभी के मुंह से कोई बात निकली नहीं कि पूरा करने दौड़ पड़ते। भाभी का काम करते उन्हें बड़ी खुशी मिलती। सविता भी अपने लाड़ले देवरों पर जान छिड़कती। प्यार और स्नेह की खुशबू से घर का वातावरण महकता रहता।
लोग अपनी बहुओं को सविता का उदाहरण देतेे और बहुएं उसकी सास को आदर्श मानतीं। वे लोग आपस में कहतीं उनके घर जाकर कितना सुकून मिलता है, लगता है जैसे किसी पुण्यस्थली पर आ गए हैं। मोहल्ले के और घरों में लगाई बुझाई की बातें होती रहतीं। आपस में मनमुटाव लड़ाई झगड़ा चलता रहता, लेकिन सविता या उसकी सास से कभी इस तरह की मन मुटाव वाली बातें करने की किसी की हिम्मत नहीं होती। अपने मृदु व्यवहार से बहू सबका मन जो जीत लेती थी। सास बहू की तारीफ करते न थकती फिर, उनका आपस का प्यार देख, दुष्ट से दुष्ट औरत भी उस रिश्ते को नापाक करने की हिम्मत न जुटा पाती।
सविता को लेडी डॉक्टर जब-जब चेकअप के लिए बुलाती महीने में दो-तीन बार उसके पास ले जाती। विटामिन की गोलियां टॉनिक देती। बच्चा गर्भ में स्वस्थ नॉर्मल बढ़ रहा था। जब वह पेट में हिलता डुलता सविता सास से कहती। मां जरा हाथ लगाकर देखो कैसी लातें चला रहा है अपने चाचाओं की तरह ही यह भी फुटबॉल अच्छा खेलेगा अभी से प्रेक्टिस कर रहा है।
सास उसकी बातें सुनकर हंस पड़ती। अभी जरा उसे कैद से छूटने दे। अकेला पूरे घर को नचा डालेगा।
‘सच मां क्या सारे बच्चे ऐसे ही शैतान होते हैं।
‘और क्या राहुल, मनीष क्या थोड़े बदमाश हैं। मन भी तो लगता है उनकी शरारतों से। पिछले साल कला मौसी के यहां लुधियाने चले गए थे तो घर में कैसा सुनसान लगता था। मेरा तो मां वक्त ही नहीं कटता था। रात होते-होते सविता को जोरों का दर्द शुरू हो गया। सास ने पड़ोस के कमल मास्टर जी को जगाया और टैक्सी के लिए दौड़ा दिया। मिनटों में टैक्सी दरवाजे से आ लगी। बहू को सहारा देकर सास ने टैक्सी में बिठाया। उसका सर गोद में रखकर वह नर्सिंग होम चल दी।
बच्चे के कपड़े और कुछ जरूरी सामान उसने पहले से ही बैग में रख छोड़े थे, इसलिए उसे जरा भी देर न लगी फिर वह फौजी की मां थी उसे मालूम था एमरजैंसी में वक्त की क्या कीमत होती है। दर्द से छटपटाती बहू को देख कर सास का मन तड़प उठा था। वह लगातार उसका सिर और गाल थपथपा रही थी।
बस मेरी बच्ची थोड़ी देर की बात है। थोड़ा और सहन कर ले प्रभु भली करेंगे। सास ने तसल्ली दी। ‘मां मैं मर जाऊंगी, अब मैं नहीं बचूंगी। बहू रोते तड़पते बोली। इतने में नर्स ने आकर उसे स्ट्रेचर पर लिटाया और दो वार्ड ब्वॉय उसे ऑपरेशन थिएटर की ओर ले गए।
थोड़ी देर बाद नर्स ने आकर कहा बधाई हो माताजी पोता हुआ है।
मेरी बहू कैसी है? सास ने घबराकर पूछा, ठीक है माताजी चिंता की कोई बात नहीं नॉर्मल डिलिवरी हुई है। चौथे दिन सास बहू पोते को घर ले आई। बिरादरी में लड्डू बंटवाये। जच्चा के गीत गवाये। ब्राह्मण और गरीबों को शक्ति भर दान दिया और पति की तस्वीर के आगे खुशी के आंसू पोंछते हुए कहा कितना अच्छा होता अगर यह मुबारक दिन देखने के लिए तुम भी होते।
कब सविता, उनकी बहू, उनके पीछे आकर खड़ी हो गई, उन्हें पता भी न चला। उसने सास की आंखें अपने दुपट्टे से पोंछते हुए कहा ‘मत रोओ मां तुम न कहती थी वे दुबारा इसी घर में जन्म लेंगे। ऐसा ही हुआ है मां, बाऊजी फिर आ गए हैं शरीर मुन्ने का है मगर रूह उन्हीं की है।
सास बच्ची की तरह बहू की गोद में सिसक रही थी।
कुछ देर बाद जी हल्का होने पर उन्होंने स्नेह भरी मुस्कान चेहरे पर लाकर बहू से पूछा मैं तेरी मां हूं या तू मेरी मां? आंखों में शरारत भरकर वह बोली ‘कभी तुम कभी मैंÓ।
उषा जैन ‘शीरीं – विभूति फीचर्स

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