नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हिंसा प्रभावित मणिपुर में 3 मई से इंटरनेट बंद को चुनौती देने वाली याचिका को तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की एक अवकाश पीठ ने कहा कि मणिपुर उच्च न्यायालय पहले से ही इस मामले की सुनवाई कर रहा है, इसलिए तत्काल सुनवाई की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने कहा, कार्यवाही की नकल करने की जरूरत नहीं है। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता शादान फरासत ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने पर जोर दिया था। पीठ ने कहा कि इस मामले में कोई जल्दबाजी नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा, इसे नियमित पीठ के समक्ष जाने दीजिए।
यह याचिका मणिपुर उच्च न्यायालय के एक वकील चोंगथम विक्टर सिंह और एक व्यवसायी मेयेंगबाम जेम्स ने दायर की है, दोनों मणिपुर के निवासी हैं।
याचिका में कहा गया है कि इंटरनेट शटडाउन का याचिकाकर्ताओं और उनके परिवारों पर आर्थिक, मानवीय, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है। तर्क दिया कि याचिकाकर्ता बैंकों से धन प्राप्त करने, ग्राहकों से भुगतान प्राप्त करने, वेतन वितरित करने, या ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से संवाद करने में असमर्थ रहे हैं।
याचिका के अनुसार, इंटरनेट बंद करना स्वयंसेवकों और युवाओं द्वारा आयोजित रैलियों के दौरान हिंसा की कथित घटनाओं की प्रतिक्रिया थी, जो मेइती मीतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की मांग का विरोध कर रहे थे। इसने कहा कि ये झड़पें राज्य भर में व्यापक आगजनी, हिंसा और हत्याओं में बदल गईं, जिसने इंटरनेट के अस्थायी और समयबद्ध बंद को उचित ठहराया।
याचिका में कहा गया है, राज्य भर में 24 दिनों से अधिक समय से इंटरनेट की पहुंच पूरी तरह से बंद है, जिससे याचिकाकर्ताओं और अन्य निवासियों के अधिकारों को काफी नुकसान हुआ है।
उन्हों कहा, इसके अतिरिक्त, वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने, उनके बैंक खातों तक पहुंचने, भुगतान प्राप्त करने या भेजने, आवश्यक आपूर्ति और दवाएं प्राप्त करने, और कुछ करने में असमर्थ रहे हैं, जिससे उनका जीवन और आजीविका ठप हो गई है।
याचिका में मणिपुर में इंटरनेट का उपयोग बहाल करने के लिए प्रतिवादी को निर्देश देने की मांग की गई है।