नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के पूर्व अध्यक्ष ई. अबूबकर की स्वास्थ्य जांच करने का मंगलवार को निर्देश दिया।
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न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने अबूबकर की मेडिकल आधार पर जमानत के लिए दायर याचिका पर विचार करने के लिए यह आदेश पारित किया और कहा, “अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की जरूरत है, तो हम इससे इनकार नहीं कर सकते।”
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पीठ ने कहा कि आगली सुनवाई दो सप्ताह बाद की जाएगी। उनकी स्वास्थ्य की स्थिति का पता चलने के बाद यह विचार किया जाएगा कि क्या मेडिकल आधार पर उन्हें जमानत दी जा सकती है। एम्स को निर्देश दिया गया है कि वह मेडिकल जांच पूरी होने के बाद दो दिनों के रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश करे।
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शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की उस दलील से सहमत नहीं हुई, जिसमें उन्होंने इस आधार पर उनकी मेडिकल जमानत की याचिका का विरोध किया था कि उन्हें कई बार यहां एम्स ले जाया गया था, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की सलाह नहीं दी।
पीठ ने कहा, “अगर उन्हें तत्काल चिकित्सा की जरूरत है और हम इसे स्वीकार नहीं करते हैं, तो हम भी जिम्मेदार होंगे।”
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को मेडिकल जांच के लिए ‘इन-पेशेंट’ के तौर पर भर्ती करने के लिए दो दिनों के भीतर एम्स ले जाने का आदेश दिया।पीठ ने कहा, “अगर लगातार असहयोग होता है, तो हमारे पास मामले को खारिज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।”
पीठ ने कहा, “अगर तत्काल चिकित्सा की जरूरत है और हम इसे स्वीकार करने में विफल रहते हैं, तो हम भी जिम्मेदार होंगे। इसलिए, हम इसे डॉक्टरों पर छोड़ देते हैं… (डॉक्टर जो भी कहेंगे) हम उसी के आधार पर जमानत पर आगे विचार करेंगे।’
श्री मेहता ने अपनी ओर से दलील दी कि ये सामान्य अपराधी नहीं हैं। इनके खिलाफ आतंकी कृत्य के तहत प्रशिक्षण और कई अन्य सबूत हैं।
इस पर पीठ ने कहा, “मेडिकल रिपोर्ट आने दीजिए और अदालत इसकी जांच करेगी। हम उसी के आधार पर काम करेंगे।”
मेहता ने कहा कि पूर्व पीएफआई प्रमुख बाहर आकर वही करना चाहते हैं जो वह पहले करते थे, जिसे सरकार रोकना चाहती है।
पीठ ने निर्देश दिया कि जांच पूरी होने के बाद एम्स निदेशक को तीन दिन के भीतर मेडिकल रिपोर्ट भरनी चाहिए।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कामिनी जायसवाल ने कहा कि उन्हें पीईटी स्कैन कराने की जरूरत है और वह गंभीर रूप से बीमार हैं, क्योंकि उन्हें अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हैं।
याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 28 मई, 2024 को उन्हें जमानत देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि अगर कोई विचारधारा गलत इरादों से प्रेरित लगती है और आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ी साजिश से भरी हुई है, तो ऐसी विचारधारा का पालन करने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
याचिकाकर्ता को 22 सितंबर, 2022 को आईपीसी की धारा 120-बी और 153-ए तथा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 की धारा 17, 18, 18बी, 20, 22, 38 और 39 के तहत लिए गिरफ्तार किया गया था।