नयी दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना की संंसद सदस्यता रद्द करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद उच्च न्यायालय के एक सितंबर के आदेश पर रोक लगाने का आदेश पारित किया।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में जद-एस के इकलौते सांसद रेवन्ना का चुनाव रद्द घोषित कर दिया था, लेकिन प्रतिद्वंद्वी को इसका लाभ नहीं दिया था।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने के साथ ही अपने आदेश में स्पष्ट किया कि प्रज्वल अपना वोट डालने और एक सांसद के रूप में कोई भत्ता प्राप्त करने के हकदार नहीं होंगे, जबकि संसद की कार्यवाही में वह भाग ले सकते हैं।
शीर्ष अदालत ने प्रज्वल की यह दलील भी स्वीकार कर ली कि वह अगले साल संसद चुनाव लड़ सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और के के वेणुगोपाल की दलीलें सुनने के अदालत ने अपना आदेश पारित किया।
सांसद प्रज्वल ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि उच्च न्यायालय ने अन्य आधारों के अलावा नियमों और प्रक्रियाओं के खिलाफ अपने फैसले पर पहुंचने के लिए उनके खिलाफ दायर दो चुनावों को एक साथ किया था।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में प्रज्वल के अपने चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्तियों सहित पूर्ण अपेक्षित विवरण का खुलासा नहीं करने के लिए 2019 के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया था।
न्यायमूर्ति के नटराजन ने तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार और अब जद-एस विधायक ए मंजू और एक अन्य व्यक्ति द्वारा दायर चुनाव याचिकाओं पर फैसला सुनाया था।
प्रज्वल को 23 मई 2019 को 6,76,606 वोट हासिल करने पर विजेता घोषित किया गया था। मंजू ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी के तौर पर 5,35,282 मतदाताओं का समर्थन हासिल किया था।
इस मामले के अदालत में लंबित रहने के दौरान प्रज्वल की जीत को चुनौती देने वाली मंजू ने भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन बाद में पाला बदल लिया और अरकलगुड निर्वाचन क्षेत्र से जेडी-एस उम्मीदवार के रूप में कर्नाटक विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी।