Monday, December 23, 2024

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति विवाद पर सुप्रीम कोर्ट 21 मार्च को करेगा सुनवाई

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिसंबर 2023 के (संशोधित) कानूनी प्रावधानों (जिसमें मुख्य न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय मंत्री को रखने का प्रावधान है) के तहत कई चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर तत्काल रोक लगाने की गुहार वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि इस मामले में वह 21 मार्च को सुनवाई करेगा।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर रोक की याचिका पर कहा कि मामला पहले भी दो बार शीर्ष अदालत के समक्ष आ चुका है। अदालत आमतौर पर अंतरिम आदेश के जरिए किसी कानून पर रोक नहीं लगाती।

 

शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता विकास सिंह ने (शीर्ष अदालत के) एक संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के पद पर नियुक्ति एक पैनल द्वारा की जानी चाहिए, जिसमें उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हों।

 

सिंह के अंतरिम निर्देश देने की गुहार पर न्यायमूर्ति खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संविधान पीठ ने तब कहा था कि अदालत द्वारा सुझाए गए पैनल का गठन तब तक किया जाना चाहिए जब तक कि इस संबंध में संसद द्वारा कानून पारित न कर दिया जाए।

 

अधिवक्ता सिंह ने हालांकि इस बात पर जोर दिया कि शीर्ष अदालत के फैसले का कोई उल्लंघन नहीं हो सकता। अदालत का अंतिम निर्देश था कि नियुक्ति प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता के पैनल द्वारा की जाएगी।
इसके बाद तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के संबंध में दायर आवेदनों पर वह 21 मार्च को सुनवाई करेगी।

 

गौरतलब है कि 14 मार्च को सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को प्रधानमंत्री, केंद्रीय कानून मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता के एक पैनल द्वारा चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था। दोनों (चुनाव आयुक्तों) ने शुक्रवार को पदभार ग्रहण कर लिया है।

 

नियुक्ति करने वाले पैनल में शामिल विपक्ष के नेता ने उनकी (दोनों की) असहमति जताई थी।
एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023 की धारा 7 के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के निर्देश के लिए अलग-अलग याचिकाएं दायर की है। इस अधिनियम में मुख्य न्यायाधीश को जगह नहीं दी गई है।
रिट याचिकाओं में नए संशोधित कानून के बजाय ‘अनूप बरनवाल’ मामले में संविधान पीठ के निर्देश के अनुसार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने का निर्देश देने की गुहार लगाई गई है।

 

याचिका में कहा गया है, “अब, कार्यपालिका के पास दो चुनाव आयुक्तों को नियुक्त करने की क्षमता है, जो उसे अनुचित लाभ दे सकती है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में चुनाव आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसलिए नियुक्तियाँ भी निष्पक्ष होनी चाहिए।”

 

कांग्रेस की जया ठाकुर की ओर से दायर याचिका में आने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर (दिसंबर 2023) नए कानून के प्रावधानों के अनुसार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति नहीं करने का निर्देश केंद्र सरकार को देने गुहार लगाई गई थी।
याचिका में कहा गया है कि नया कानून स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों के खिलाफ है। इसके अलावा यह ‘अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ’ मामले में शीर्ष अदालत की ओर से निर्धारित सिद्धांतों के विपरीत है।
शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने 2 मार्च 2023 को कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक पैनल की सलाह पर की जाएगी। इस पैनल में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे।

 

इस बीच पिछले साल दिसंबर को संसद द्वारा पारित नए कानून में शीर्ष अदालत के मुख्य न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय मंत्री को पैनल रखने का प्रावधान है।

 

चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने 9 मार्च 2023 को इस्तीफा दे दिया और उससे पहले एक अन्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल फरवरी में पूरा हो गया था। केंद्र सरकार 15 मार्च तक दो आयुक्तों की नियुक्ति कर सकती है।

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