Thursday, January 23, 2025

सांसदों, विधायकों के मामलों के शीघ्र निपटारे की निगरानी हाईकोर्ट करेगी: सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने वर्तमान, पूर्व सांसदों और विधायकों से जुड़े आपराधिक मामलों की प्रभावी निगरानी तथा शीघ्र निपटान के लिए गुरुवार को सभी उच्च न्यायालयों को स्वत: संज्ञान मामला दर्ज करने का निर्देश दिया।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उन मामलों की प्रभावी निगरानी के उपाय विकसित करने की जिम्मेदारी उच्च न्यायालयों पर छोड़ते हुए कहा कि उनसे निपटाने के लिए देश भर की ट्रायल अदालतों को एक समान दिशानिर्देश देना मुश्किल होगा।

शीर्ष अदालत ने अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका का निपटारा करते हुए सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के त्वरित निपटान के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा वाले मामलों को प्राथमिकता देने सहित कई निर्देश जारी किया।

पीठ ने कहा, “उच्च न्यायालय न्यायिक और प्रशासनिक स्तर पर इन मुद्दों से निपट रहे हैं। वे उस स्थिति से अवगत हैं, जो उनकी हर जिला अदालत में मौजूद है… हम ऐसे तरीकों को विकसित करने के लिए इसे उच्च न्यायालयों पर छोड़ना उचित समझते हैं। ”

पीठ ने स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सांसदों, विधायकों के लिए नामित अदालतों के संबंध में एक स्वत: संज्ञान मामला दर्ज करेंगे, ताकि उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी की जा सके।

शीर्ष अदालत ने आगे कहा, “स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ या उनके द्वारा नियुक्त पीठ द्वारा की जाएगी। स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई करने वाली विशेष पीठ मामले को नियमित अंतराल पर सूचीबद्ध कर सकती है…उच्च न्यायालय मामलों के शीघ्र या प्रभावी निपटान के लिए आवश्यक आदेश और निर्देश जारी कर सकता है।’

शीर्ष अदालत ने यह भी आदेश दिया कि विशेष पीठ अदालत की सहायता के लिए महाधिवक्ता या लोक अभियोजक को बुलाने पर विचार कर सकती है। उच्च न्यायालय को अदालतों को मामले आवंटित करने की जिम्मेदारी वहन करने के लिए प्रधान और जिला सत्र न्यायाधीश की आवश्यकता हो सकती है।

पीठ ने कहा, “नामित अदालतों को सांसदों, विधायकों के खिलाफ मौत या आजीवन कारावास की सजा वाले आपराधिक मामलों को पहले प्राथमिकता देनी चाहिए। फिर, पांच साल या उससे अधिक वाले मामले…मुख्य न्यायाधीश उन मामलों को विशेष पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर सकते हैं, जिनमें मुकदमे पर रोक के आदेश पारित किए गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुकदमे की शुरुआत और समापन के लिए रोक के आदेशों को हटाने सहित उचित आदेश पारित किए गए हैं।”

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