Monday, May 20, 2024

सीएजी ने योगी सरकार के खर्चों पर उठाया सवाल, राजकोष से ज्‍यादा रकम निकाले जाने पर जताई आपत्ति

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लखनऊ। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने उत्तर प्रदेश में वित्तवर्ष के अंत में खर्च में तेजी लाने पर आपत्ति जताई है। इसने उत्तर प्रदेश में विधानमंडल के समक्ष नियमितीकरण के लिए 48 अनुदानों के तहत 32,533.46 करोड़ रुपये के अतिरिक्त संवितरण को राज्य सरकार की विफलता बताते हुए इस पर भी कड़ी आपत्ति जताई है।

राज्य वित्त में सरकारी लेखा परीक्षक ने कहा, भारत के संविधान के अनुच्छेद 204 और 205 का उल्लंघन करते हुए 2005-2006 से 2020-2021 तक किए गए धन का अतिरिक्त वितरण “बजटीय और वित्तीय नियंत्रण की प्रणाली को खराब करता है और वित्तीय अनुशासनहीनता को बढ़ावा देता है”। ऑडिट रिपोर्ट (31 मार्च, 2022 को समाप्त वर्ष के लिए) इस सप्ताह की शुरुआत में यहां राज्य विधानसभा के समक्ष रखी गई।

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सीएजी ने आगे कहा है कि प्राधिकार से अधिक व्यय और उसके बाद गैर-नियमितीकरण का जिक्र उत्तर प्रदेश की पिछली राज्य वित्त लेखा परीक्षा रिपोर्ट में है। इसने सिफारिश की है कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अतिरिक्त व्यय के सभी मौजूदा मामलों को नियमितीकरण के लिए राज्य विधानमंडल के समक्ष रखा जाए।

प्रमुख अर्थशास्त्री प्रोफेसर यशवीर त्यागी ने कहा, “बिना विधायी मंजूरी के लगातार राज्य सरकारों द्वारा अनुदान का वितरण, जिस पर सीएजी ने आपत्ति जताई है, स्वस्थ राजकोषीय व्यवहार नहीं है। यह राजकोषीय अनुशासन की कमी को भी दर्शाता है। एक तरह से यह राजकोषीय अनुशासन की कमी को दर्शाता है।” सरकार द्वारा वितरित और खर्च किए गए धन की जांच करना विधायिका का अधिकार है। ऐसी चूक से बचना चाहिए था।”

कैग ने राज्य सरकार द्वारा विभिन्न मदों में किए गए 7,696.63 करोड़ रुपये के एकमुश्त प्रावधान पर भी आपत्ति जताई है। इस एकमुश्त प्रावधान में से 4,261.46 करोड़ रुपये (प्रावधान का 55.37 प्रतिशत) वास्तव में खर्च किए गए। इसमें उल्लेख किया गया है कि सड़क कार्यों के लिए 4,260.01 करोड़ रुपये का एकमुश्त प्रावधान किया गया था, जो बजटीय प्रावधानों का 27.88 प्रतिशत था। इसमें से वास्तविक खर्च 3,533.50 करोड़ रुपये था।

कैग ने कहा, “व्यय के सटीक उद्देश्य की पहचान किए बिना एकमुश्त प्रावधान पारदर्शी बजटीय प्रथाओं के खिलाफ है।”

सीएजी ने वित्तवर्ष के आखिरी महीने में तेजी से खर्च करने की प्रथा पर भी आपत्ति जताई और सिफारिश की कि राज्य सरकार को स्थिर गति बनाए रखने के लिए समापन महीनों, विशेष रूप से मार्च में खर्च को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करना चाहिए।

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