कानपुर। चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कृषि मौसम वैज्ञानिक डॉ. एस एन सुनील ने बताया कि पीला रतवा हवा से फैलने वाली बीमारी होती है। जो तलहटी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश मध्य उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में गेंहू की फसल को प्रभावित करती है। पत्ती से फैलने वाली इस बीमारी के कारण फसल की पैदावार बहुत प्रभावित होती है। ऐसे में किसान भाई इन दिनों गेंहू की फसल को बचाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करें।
उन्होंने बताया कि गेंहू किसान की मुख्य फसलों में से एक है। जिसकी पैदावार पर देश की जीडीपी भी निर्भर होती है। किसान 15 नवंबर से गेंहू की बुवाई शुरू कर देता है। जो दिसम्बर माह तक चलती है। इसमें कुछ बीज भी पैदावर के हिसाब से प्रयोग किये जाते हैं। गेंहू की बुवाई के समय भी बीज को उपचारित किया जाता है और फसल तैयार होने तक किसान को इसकी देखभाल पर विशेष ध्यान रखना होता है।
डॉ. एस एन सुनील ने बताया कि जनवरी-मार्च माह में गेंहू में एक बीमारी आती है, जिसे हम पीला रतवा कहते हैं। यह बीमारी हवा से फैलने वाली होती है। जो तलहटी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में गेंहू की फसल को प्रभावित करती है। विज्ञानी के मुताबिक पत्ती से फैलने वाली इस बीमारी के कारण फसल की पैदावार बहुत प्रभावित होती है। इसकी रोकथाम के लिए किसान को सचेत होकर कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर छिड़काव आदि करना होता है।
वैज्ञानिक ने बताया कि पीला रतवा की बीमारी जनवरी व फरवली माह में गेंहू में लगती है। उन्होंने बताया कि यह बीमारी तलहटी क्षेत्र से हवा के माध्यम से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में प्रवेश करती है। गेंहू की पीली पत्ती हो जाना इस बीमारी के लक्षण हैं। जो पहले खेत में कहीं कहीं नजर आते हैं, परन्तु बाद में यदि बीमारी की रोकथाम के लिए उपाय नहीं किया गया तो इससे पूरा खेत ही इस बीमारी के कारण नष्ट हो सकता है। इसलिए किसान भाइयों को पीला रतवा बीमारी के लक्षण नजर आते ही प्रभावित पौधे को उखाड़ कर मिट्टी में दबा देना चाहिए। साथ ही कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर उचित छिड़काव भी करना चाहिए ताकि इस बीमारी को पूरे खेत में फैलने से रोक दिया जाए।