कहा जाता है कि जमाना बदल गया है, जबकि सच्चाई यह है कि हम बदल गये हैं। भगवान की दया तो उसी प्रकार हो रही है। ब्रह्मांड के ग्रहों की गति में कोई अंतर नहीं आया है। सूर्य उसी प्रकार गर्मी और प्रकाश दे रहा है। चन्द्रमा की शीतलता में कोई कमी नहीं आई। वायु उसी प्रकार चल रही है। जल वायु में कोई परिवर्तन है तो वह हमारी त्रुटि से है। हम पर्यावरण को नष्ट करने पर तुले हैं। फिर बदला क्या?
बदली है आदमी की फितरत, भय और लज्जा समाप्त हो गई है। किसी को बुरा करने से रोको तो रोकने वाला बुरा। यदि बुरा देखो और उसे बताओ तो आप ही बुरे हैंं। बुरा सुनकर उसे समझाओगे तो बुरा आप कह रहे हैं। बुरा वह नहीं, जिसने बुरा कहा।
किसी की कन्या के साथ ससुराल में दुर्व्यवहार होता था तो सभी इस बात को सही मानते थे। आज कानून का दुरूपयोग हो रहा है। सास-ससुर को दहेज मांगने के जुर्म में फंसाया जा रहा है, जबकि सभी मानते हैं कि इन मामलों में दस प्रतिशत भी सच्चाई नहीं होती। घर बर्बाद हो रहे हैं। दूसरों को अपमानित करने के उपाय किये जा रहे हैं।
पहले कोई किसी का नमक खाता था तो स्वयं को उसका ऋणी मानता था, जीवनभर कृतज्ञ रहता था। अब नमक हलाली इस प्रकार हो रही है कि जिसका नमक खाया जाता है, जिससे धन की सहायता ली जाती है, उसी की हत्या करा दी जाती है।
अब भरोसा ईश्वर पर ही है कि वह ऐसे परोपकारी लोगों को विशेष ऊर्जा प्रदान करें वे हतोत्साहित न हो जो समाज को सही दिशा देना चाहते हैं। मानवता की सेवा करना चाहते हैं।