Friday, April 26, 2024

सनातन के विरोध की सच्चाई

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सनातन अथवा हिंदू धर्म के विरोध का सिलसिला एक प्रयोग है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे एवं राज्य सरकार के मंत्री उदय निधि के बाद डीएमके के ए राजा और प्रियंक खडग़े के बाद बिहार राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष जगतानंद सिंह भी इस मैदान में कूद चुके हैं। कार्ति चिदंबरम, मल्लिकार्जुन खडग़े, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और मंत्री जी. परमेश्वर टीका टिप्पणी से पीछे नहीं रहे। इन सब का उद्देश्य तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री पोनगुडी ने व्यक्त कर दिया की विपक्ष के गठबंधन बनाने का मकसद ही सनातन का विरोध करना है।

यह निर्विवाद सच्चाई है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में ऐसी कोई सूची नहीं है, जिसमें ऐसा कहा गया हो कि फला फला जातियां अछूत हैं। डॉ. आम्बेडकर ने लिखा है कि वेदों में छुआछूत का कोई उल्लेख नहीं है। हिंदू धर्म शास्त्रों में वर्ण व्यवस्था का जरूर उल्लेख है लेकिन वर्ण भेद का नहीं। हिंदू शास्त्रों में जो शूद्र शब्द का उल्लेख है इसका अर्थ शिल्पी या कुशल कलाकार होता है। इन्हीं परंपरागत व्यवसाय वालों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने जन्मदिन और विश्वकर्मा जयंती के उपलक्ष में दिल्ली में मिले। उनकी समस्या जानी। इस अवसर पर 300000 रुपये तक का गारंटी का लोन देने का ऐलान किया। निश्चित रूप से इससे उनके और उनके परिवार के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा।

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सच्चे अर्थों में प्राचीन जाति व्यवस्था की तुलना आधुनिक आर्थिक गिल्डो से की जा सकती है। आज के दौर में सनातन का प्रतिनिधित्व करने वाली विश्व हिंदू परिषद 1969 के उडुपी सम्मेलन में यह घोषित कर चुकी है–हिंदवासोदरा: सर्वे’यानी सभी हिंदू भाई-भाई हैं। निसंदेह उदय निधि जैसे लोग जब सनातन का विरोध करते हैं तो इसमें उसी धारा का प्रवाह होता है जो डीएमके का मुख्य उद्देश्य रहा है- सनातन और हिंदू धर्म को गाली देकर सत्ता में बने रहने की राजनीति? इसके पहले रामा स्वामी पेरियार के कारनामों से देशवासी परिचित होंगे, जिन्होंने आर्य बनाम द्रविड़ की थ्योरी विकसित करते हुए अलग द्रविड़ स्थान की मांग की थी। बीते कई सालों से यह मुद्दा ठंडा पड़ा हुआ था।

यद्यपि इस दौर में भी जाति और संप्रदाय की राजनीति करने वालों की कमी नहीं रही लेकिन बड़ा सवाल टाइमिंग का है। गौर करने की बात यह है कि आखिर इसी समय सनातन का मुद्दा क्यों उठाया गया। जबकि कभी विवेकानंद ने इसी सनातन की पताका पूरे विश्व में फहराई थी। गांधी जी भी अपने को सनातनी और हिंदू कहने में गर्व महसूस करते थे। महान इतिहासकार अर्नाल्ड टायनबी ने लिखा है-हिंदू धर्म ‘जियो और जीने दो’ का धर्म है। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक हिंदू होने पर गौरव महसूस करते हैं और खुलकर जय श्री राम बोलते हैं।

आज पूरी दुनिया में कहीं न कहीं हिंदू धर्म के प्रति उसकी सहिष्णुता और वैज्ञानिकता के चलते आकर्षण बढ़ता जा रहा है। ऐसी स्थिति में यह बात समझ के परे है कि हमारे देश में ही सनातन का ऐसा विरोध क्यों? दिखता तो यह है कि जो लोग सनातन में भेदभाव और असमानता की शिकायत कर रहे हैं, वह कुल मिलाकर जातिवाद की शिकायत कर रहे हैं, पर वही लोग जातिवाद को बढ़ावा देने के लिए खास तौर पर पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में करने के लिए यह सभी उपक्रम कर रहे हैं।

इनको लगता है कि ऐसा करके वह चुनाव में भाजपा को चुनौती दे सकते हैं। जाति जनगणना की मांग भी इसी का एक बड़ा पहलू है। पर इन्हें पता नहीं की गंगा और कावेरी में अब बहुत पानी बह चुका है और समय की धारा को पीछे नहीं किया जा सकता। सनातन तो चिर नूतन है, क्योंकि वह सतत परिवर्तनशील है। महात्मा गांधी का कहना था कि हिंदू धर्म ही दुनिया में एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें सुधार के लिए सतत प्रक्रिया चलती रही। महात्मा बुद्ध, महावीर, आचार्य शंकर, रामानंद, कबीर, वल्लभाचार्य और स्वामी दयानंद सरस्वती सभी हिंदू धर्म को अंदर से मांजते रहे।

विपक्षी गठबंधन के राजनीतिक एजेंडे को देखते हुए प्रधानमंत्री भी कह चुके हैं कि जिस सनातन ने इस देश को हजारों वर्ष तक एक रखा, उसे तोडऩे और देश को गुलाम बनाने के लिए पुन:कुछ शक्तियों द्वारा प्रयास किया जा रहा है। इस संबंध में एक रिट याचिका की सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने अभी हाल में ही कहा -सनातन धर्म शाश्वत कर्तव्यों का एक समूह है, इसे कई स्रोतों से एकत्र किया गया है। स्वयं भारत का सर्वोच्च न्यायालय हिंदुत्व को कोई मजहब ना मानते हुए देश की संस्कृति और राष्ट्रीयता का पर्याय मान चुका है। इस धर्म को मिटाने के लिए आक्रांताओं ने पता नहीं कितने प्रयास किए, पर वह उसके अस्तित्व को मिटा नहीं पाए।

इकबाल ने लिखा है कि इस्लाम का बेड़ा जिसने करीब पूरी दुनिया को फतह कर लिया, वह गंगा के दहाने पर जाकर डूब गया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम निश्चिंत होकर बैठ जाएं। अखंड भारत को कई बार लहुलुहान किया गया है। यह सच है कि अगर वर्ष 2014 में मोदी सरकार न आती तो कश्मीर घाटी को भी देश से काटने का खतरा पैदा हो गया था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश में सत्ता के भूखे कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों की इस देश के वाममार्गियों और इस्लामी कट्टरपंथियों से अच्छी लयात्मकता है, क्योंकि उन्हें किसी भी कीमत पर देश की सत्ता चाहिए। इस मामले में कांग्रेस का ट्रैक रिकार्ड भी कोई अच्छा नहीं है।
-वीरेंद्र सिंह परिहार

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