नई दिल्ली | टाइप-2 डायबिटीज मेलिटस भारत में पहले ही महामारी का रूप धारण कर चुका है। भारत को इसके चलते दुनिया की मधुमेह राजधानी होने का यह अनचाहा गौरव हासिल प्राप्त हो चुका है, शुक्रवार को यह बात केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कही। उन्होंने कहा, इस तरह की खतरनाक स्थिति में जब तक हम गर्भवती महिलाओं में मधुमेह को प्रभावी ढंग से रोकने में सक्षम नहीं होते हैं, तब तक टाइप -2 मधुमेह मेलिटस की श्रृंखला को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक जाने में रोकना संभव नहीं हो सकता है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने डिप्सी (डायबिटीज इन प्रेग्नेंसी स्टडी ग्रुप ऑफ इंडिया) के वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बातें कहीं। सिंह ने कहा, यह एक सर्वविदित तथ्य है कि एक महिला जिसे गेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस (जीडीएम) हो जाता है, वह अपनी संतान को टाइप-2 मधुमेह विकसित करने के लिए एक उच्च प्राथमिकता देने की संभावना रखती है और वह भी अपेक्षाकृत कम उम्र में।
डॉ. जितेंद्र सिंह, जो डिप्सी के संस्थापक सदस्य हैं और उस टीम के सदस्य भी हैं, जिसने गर्भावस्था में मधुमेह के उपचार के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्यता प्राप्त दिशा-निर्देश निर्धारित किए थे, ने डॉ. वी. सेशियाह की विशेष रूप से प्रशंसा की, जिन्होंने अपना जीवन समय मधुमेह रोग के उपचार के लिए समर्पित किया है। उन्होंने कहा, लगभग आधी शताब्दी पहले, डॉ. वी. सेशियाह और उनकी टीम ने प्रत्येक गर्भवती महिला में ब्लड शुगर के लिए स्पॉट टेस्ट करने की सिफारिश की थी और आज उसी टीम द्वारा गर्भावस्था में एकल प्रक्रिया परीक्षण विकसित किया गया है। इसे भविष्य के प्रबंधन के लिए विश्वसनीय और प्रभावी के रूप में दुनिया भर में स्वीकार किया गया है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि डॉ. वी. सेशियाह अब गर्भवती महिलाओं में मधुमेह की प्राथमिक रोकथाम की ओर बढ़ गए हैं। इसकी सफलता न केवल भारत में मधुमेह की महामारी को नियंत्रित करने में मदद करेगी बल्कि युवाओं के अच्छे स्वास्थ्य को भी सुनिश्चित करेगी।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आज के नवजात शिशु कल के युवा हैं और वे वर्ष 2047 में भारत के चेहरे और प्रोफाइल को निर्धारित करेंगे और इसलिए हम सभी को न केवल चिकित्सा बिरादरी को बल्कि पूरे देश को गर्भावस्था में मधुमेह की प्राथमिक रोकथाम के लिए डॉ. वी. सेशियाह द्वारा उठाए गए कदमों को समर्थन और सहयोग देना चाहिए।