Wednesday, November 6, 2024

विजिलेंस ने रिटायर आईएएस मोहिंदर सिंह को भेजा नोटिस, तीन दिन में होना होगा पेश 

नोएडा। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के शासनकाल के दौरान हुए लगभग 1400 करोड़ रुपये के कथित स्मारक घोटाले की जांच में हाल ही में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है। विजिलेंस विभाग ने इस मामले में रिटायर आईएएस अधिकारी मोहिंदर सिंह को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा है, जिससे इस मामले ने एक बार फिर सुर्खियाँ बटोरी हैं।

 

 

गौरतलब है कि हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा मोहिंदर सिंह के ठिकानों पर छापेमारी के दौरान करोड़ों रुपये के हीरे, नकदी, और कीमती संपत्तियों से जुड़े दस्तावेज़ बरामद किए गए थे। इस घटनाक्रम के बाद विजिलेंस विभाग ने अपनी जांच की गति और तेज कर दी है। स्मारक घोटाला मायावती के शासनकाल के दौरान विभिन्न स्मारकों के निर्माण और सुधार कार्यों में कथित अनियमितताओं से जुड़ा हुआ है।

 

उत्तर प्रदेश विजिलेंस विभाग ने रिटायर आईएएस अधिकारी मोहिंदर सिंह को स्मारक घोटाले में पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया है, जिसमें उन्हें नोटिस मिलने के तीन दिन के भीतर पेश होने का निर्देश दिया गया है। यह नोटिस उस समय जारी हुआ है जब हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उनके चंडीगढ़ स्थित ठिकानों पर छापेमारी की थी, जिसमें करोड़ों की संपत्ति और दस्तावेज बरामद हुए थे।

 

सूत्रों के अनुसार, मोहिंदर सिंह पहले भी विजिलेंस के नोटिस के बावजूद पेश नहीं हुए थे, और इसी तरह ईडी द्वारा पूछताछ के लिए बुलाए जाने पर भी वे उपस्थित नहीं हुए। ईडी ने उन्हें दोबारा 5 अक्टूबर को तलब किया था, लेकिन उन्होंने फिर भी इस तिथि पर उपस्थिति नहीं दी। इस घटनाक्रम से यह मामला और भी गंभीर हो गया है, क्योंकि अधिकारियों के लिए अब उनके खिलाफ और कड़े कदम उठाने की संभावना बढ़ गई है।

 

लखनऊ और नोएडा में बीएसपी सरकार के दौरान निर्मित स्मारकों में कथित 1400 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच में प्रमुख सचिव आवास के पद पर रहे मोहिंदर सिंह की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। जांच में यह सामने आया है कि जुलाई 2007 में हुई एक उच्चस्तरीय बैठक में स्मारकों के निर्माण के लिए मिर्जापुर के सैंड स्टोन (बलुआ पत्थर) का उपयोग करने का निर्णय लिया गया था।

 

हालांकि, बाद में हुई एक अन्य बैठक, जिसमें मोहिंदर सिंह भी उपस्थित थे, में इस निर्णय को बदलकर राजस्थान से सैंड स्टोन मंगवाने का फैसला किया गया। इस बदलाव के कारण स्मारक निर्माण की लागत में भारी वृद्धि हुई, जो घोटाले के आरोपों का एक प्रमुख बिंदु बना। कहा जा रहा है कि इस फैसले से न केवल सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान हुआ, बल्कि इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप भी उभरकर सामने आए हैं।

 

विजिलेंस और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मामले की जांच की जा रही है, और मोहिंदर सिंह की भूमिका को लेकर लगातार पूछताछ की जा रही है। उनकी पिछली बैठकों में की गई निर्णय प्रक्रियाओं और उन पर लिए गए निर्णयों के कारण वे अब जांच के केंद्र में हैं।

 

मोहिंदर सिंह के बयान के बाद अब रमा रमण के कार्यकाल की गहन जांच की जाएगी, विशेष रूप से बिल्डरों को दी गई जमीन आवंटन की प्रक्रिया पर। मोहिंदर सिंह ने ईडी को बताया कि 2010 में उनके सीईओ पद से हटने के बाद प्रोजेक्ट से जुड़ी औपचारिकताएं उन अधिकारियों द्वारा पूरी की गईं जो उनके बाद तैनात रहे।

 

 

रमा रमण का कार्यकाल विवादों से भरा रहा, और उनके खिलाफ कई गंभीर आरोप लगे थे। नोएडा निवासी जितेंद्र कुमार गोयल द्वारा दाखिल याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1 जुलाई 2016 को उनकी शक्तियां जब्त कर ली थीं। न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि रमा रमण को किसी अन्य पद पर स्थानांतरित किया जाए। यह घटना उनके कार्यकाल के विवादित फैसलों और नीतियों की ओर इशारा करती है, जिसमें भूमि आवंटन के निर्णय भी शामिल हैं।

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