शरीर में सबसे अधिक मात्र जल की होती है। जल के बिना मानव जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। वैसे भी शरीर में कोशिकाओं-ऊतकों के जाल के अलावा कुछ भी नहीं है। शरीर का तापमान संयत रखने में भी जल का अभूतपूर्व योगदान है।
इसकी अनुपस्थिति या कमी की कल्पना मात्र से ही शरीर का तापमान को संयत रखने के मामले में सोचा भी नहीं जा सकता। शरीर के विभिन्न जोड़, आंखों की मुलायम परत, फेफड़े की दीवारें जलमग्न रहने के कारण ही अपना दायित्व बखूबी निभा पाते हैं।
मस्तिष्क को बाह्य झटकों से बचाने वाले सरल पदार्थ सी. एस. एफ. में जल ही मुख्य घटक है। मानव की महत्त्वपूर्ण शारीरिक क्रि याएं जैसे आंतों द्वारा भोजन का अवशोषण, गुर्दों द्वारा महत्त्वपूर्ण पदार्थों का अवशोषण, भोजन को पचाने वाले विभिन्न रसों का उत्पादन, शारीरिक क्रियाओं को नियमित करने वाले विभिन्न हारमोनों को इनके उद्भव स्थल से कार्य क्षेत्र तक पहुंचाने की क्रिया जल की अनुपस्थिति में कभी भी परिपूर्ण नहीं हो सकती।
सम्पूर्ण दिन में हम जितना पानी पीते हैं, ठीक उतनी ही मात्र में हमारे शरीर से पानी का निष्कासन भी होता है। यही कारण है कि हमारे शरीर को हर क्षण पानी की आवश्यकता बनी रहती है। शरीर में थोड़ी-सी भी पानी की कमी हो जाने से बहुत बड़ा खतरा उठाना पड़ सकता है। इसे निर्जलीकरण के नाम से भी जाना जाता है।
जल शरीर को फुर्तीला व चुस्त बनाता है तथा शरीर की गर्मी को शांत करता है। मल की सफाई करता है अत: कब्ज के रोगियों के लिए जल का अधिक पीना अमृतपान के समान होता है। शारीरिक वृद्धि एवं पोषण के दृष्टिकोण से पानी की अनिवार्यता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
पानी से ही रक्त की तरलता बनी रहती है और सुगमतापूर्वक उसका प्रवाह होकर प्रत्येक कोशिका को सुदृढ़ जीवन प्रदान करने में सक्षम सिद्ध होता है। पानी की कमी से मूत्र भी पीला होने लगता है। पसीना आने का संबंध भी पानी से ही होता है। इससे शरीर का ताप संतुलित रहता है। अधिक मात्र में पानी पीने से गुर्दे क्रियाशील रहते हैं जिससे पथरी जैसे रोग की संभावना क्षीण हो जाती है।
अपच, बदहजमी, खट्टी डकारें, अतिअम्लता की शिकायत होने पर पानी अधिक पीना लाभदायक होता है। बुखार को कम करने और मांसपेशियों के दर्द को कम करने के लिए सुसुम पानी का प्रयोग करना चाहिए। जले मांस को साफ करने, घाव भरने, सूजन रोकने, खरोंचों के दर्द को कम करने के लिए शीतल जल का प्रयोग करना चाहिए।
बहुत अधिक पानी भी नहंीं पीना चाहिए, बहुत कम पानी भी नहीं पीना चाहिए। दोनों दशाओं में भोजन नहीं पचता। जठराग्नि को बढ़ाने अर्थात् पाचनशक्ति को बढ़ाने के लिए भोजन के साथ घूंट-घूंट करके पानी पीना पर्याप्त होता है। दिन भर में आठ-दस गिलास तक पानी पीना हितकर होता है। इससे शरीर के दूषित द्रव्य तरल होकर मल-मूत्र, पसीने तथा श्वास के मार्ग से बाहर चले जाते हैं। उपवास के दिनों में कम जल पीना हितकर होता है।
बीस-पच्चीस वर्ष के युवक-युवती को दिन भर में आठ-दस गिलास तक पानी पीना चाहिए। युवक की अपेक्षा युवतियों को अधिक पानी पीना चाहिए क्योंकि उन्हें इस अवस्था में स्तनों की वृद्धि को बढ़ाना, मासिक के कष्टों से छुटकारा पाना, गर्भाशय एवं योनिप्रदेश को पुष्ट करना तथा श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) से छुटकारा पाना होता है। दिन भर में बारह गिलास तक ताजा जल पीना युवतियों को स्वस्थ व सुन्दर बनाने वाला होता है।
झरने के नीचे बैठकर पानी के चोटों को देने से स्तनों की गोलाई बढ़ती है, योनिप्रदेश पर पानी की चोटों को देने से वह पुष्ट होती हैं तथा अनेक बीमारियों से सुरक्षित भी रहा जा सकता है। इस हेतु गरम पानी का उपयोग न करके शीतल जल का उपयोग करना चाहिए।
सम्भोग के तुरन्त बाद, व्यायाम के तुरन्त बाद, भोजन करने से पहले, किसी भी शारीरिक श्रम से पहले या तुरन्त बाद पानी नहीं पीना चाहिए। चाय, कॉफी, सिगरेट आदि के पीने से पहले एक गिलास शीतल जल पी लेना हितकर होता है।