Friday, April 26, 2024

हम ब्रिटेन और फ्रांस से आगे हैं, जापान और जर्मनी से आगे निकलना है: उपराष्ट्रपति

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नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का कहना है अर्थव्यवस्था के संदर्भ में हम ब्रिटेन और फ्रांस से आगे निकल गए हैं। वर्ष 2030 तक हमें जापान और जर्मनी से आगे निकलना है।

धनखड़ ने रविवार को भारतीय सांख्यिकी सेवा के अधिकारियों से मुलाकात के दौरान यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि हम विघटनकारी प्रौद्योगिकियों के युग में हैं। हमने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स के बारे में सुना है लेकिन आपको अपने काम के लिए प्रौद्योगिकी को नियोजित करना होगा। आपको डेटा का तेजी से विश्लेषण करना पड़ सकता है। मशीन लर्निंग एक ऐसा तंत्र हो सकता है जो आपको डेटा को तर्कसंगत दृष्टिकोण से देखने के लिए सशक्त बनाएगा और मुझे विश्‍वास है कि आप सभी उस कार्य के प्रति समर्पित रहेंगे।

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उन्होंने अधिकारियों से कहा कि आपके कार्य के नीतिपरक पहलुओं को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जा सकता। मैं आपको एक वास्तविक घटना की याद दिलाना चाहता हूं, जिसमें शीर्ष पांच वैश्विक ऑडिटिंग कंपनियों में से एक कंपनी शामिल है। वे लगभग आपके जैसे ही हैं। जब वे किसी कंपनी की बैलेंस शीट पर हस्ताक्षर करते हैं, तो शेयरधारकों, हितधारकों को विधिवत सूचित किया जाना चाहिए। लेकिन वह विश्व स्तर पर शीर्ष पांच में से एक प्रतिष्ठित कंपनी विफल हो गई, क्योंकि उसने हितधारकों के हितों की अनदेखी करते हुए ग्राहक, अर्थात् कॉर्पोरेट प्रबंधन को संतुष्ट किया। इसलिए, आपसे नैतिकता के उच्च मानक प्रदर्शित करने की अपेक्षा की जाती है।

उपराष्ट्रपति ने इन अधिकारियों से कहा, “हमारी स्थिति देखिए कि हम केवल 10 वर्ष पूर्व अर्थव्यवस्था के संदर्भ में कहां थे। अब हम ब्रिटेन और फ्रांस से आगे निकल गये हैं। वर्ष 2030 तक जापान और जर्मनी से आगे निकलना है। लेकिन आपके योगदान से इन उपलब्धियों को गुणात्मक बढ़त मिलेगी। जब मैं आपकी उम्र का था तब मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा लेकिन अब आपको एक पारिस्थितिकी तंत्र का उपहार मिला है। लगभग 10 वर्ष पहले भी, हमारे पावर कॉरिडोर पावरब्रोकर्स के साथ थे। वे निर्णय लेने की प्रक्रिया का लाभ उठा रहे थे और आप यह जानते हैं, अब सत्ता गलियारे पूरी तरह से स्वच्छ हो गए हैं। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है जिससे हमारी गुणवत्‍ता समृद्ध होने में सहायता मिलेगी।”

धनखड़ ने कहा कि हमारे पास एक कानूनी शासन था जो औपनिवेशिक प्रेरित था, जो बंधनमुक्त हो चुका है। हमारे यहां पहले एक व्यवस्था थी ‘दंड विधान’ अब हमारे पास ‘न्याय विधान’ है क्योंकि अब नया विधान हजारों वर्षों की हमारी सभ्यता के लोकाचार से निकलता है।

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