त्वचा पर बाहरी वातावरण का प्रभाव तो पड़ता ही है। इसके अतिरिक्त हमारे वस्त्र भी त्वचा पर प्रभाव डालते हैं। तेज धूप, तेज हवाएं, धूल भरी हवाएं, सर्दियों की शुष्क हवाएं, प्रदूषण त्वचा पर कुप्रभाव डालती हैं। अगर हम रेशमी या ऊनी वस्त्र सीधे शरीर पर धारण करते हैं तो त्वचा पर खुजली होने लगती है।
कभी कभी खुजली इतना परेशान करती है कि मन करता है प्रभावित भाग को तेज नुकीली वस्तु से खुजलाया जाए चाहे त्वचा को कितना भी नुकसान क्यों न पहुंचे। इस प्रकार खुजली कष्टदायक रोग बनकर रह जाती है।
खुजली का एक रूप एक्जिमा भी होता है जो धूल व रासायनिक उत्पादों के कारण होता है। जिन घरों में सफाई के लिए घोल, डिटर्जेंट, तेल या अन्य सामान अधिक प्रयोग किए जाते हैं वे त्वचा को हानि पहुंचाते हैं। शिशुओं में एक्जिमा अक्सर चेहरे, गर्दन, कान और धड़ को प्रभावित करता है। बड़े बच्चों और किशोरों में कोहनी के अंदर वाले भाग, घुटने, टखने, कलाई, हाथों के जोड़ों पर प्रभाव डालता है।
त्वचा की अधिक खुश्की भी खुजली का कारण होती है। यह अक्सर उम्र बढऩे के साथ अधिक रहती है। सर्दियों में त्वचा अधिक खुश्क होती है। सर्दियों में त्वचा पर तेेल का प्रयोग अधिक करें।
लक्षण:-
– शरीर पर जलन होती है।
– प्रभावित भाग को अधिक खुजलाने से त्वचा पर जख्म होने लगते हैं।
-त्वचा खुरदरी तथा मोटी हो जाती है।
ध्यान रखें:-
– तेज धूप में बाहर न निकलें। अगर जाएं भी तो छाता लेकर जाएं।
– ऊनी, रोशमी वस्त्र सीधे न पहनें।
– सर्दियों में, गुनगुने पानी से स्नान करने के बाद आलिव ऑयल, सरसों
का तेल या नारियल तेल शरीर पर लगाएं।
– देसी घी पिघला कर भी लगा सकते हैं।
– जब कभी तेज हवाएं चल रही हों या धूल भरी आंधियां तो बाहर न निकलें। अगर जाना जरूरी हो तो नाक, सिर, मुंह ढक कर रखें।
– पानी खूब पिएं ताकि त्वचा की कुदरती चिकनाहट बनी रहे और शरीर के विषैले तत्व पेशाब और पसीने द्वारा बाहर निकल जाएं।
– चाय-काफी का सेवन कम से कम करें।
– सारिका