Wednesday, November 6, 2024

चुनाव हारने वाली हर पार्टी हार का पहला ठीकरा ईवीएम मशीन पर ही क्यों फोड़ती है?

यह जग जानी बात है कि हर फेल होने वाला छात्र अपने फेल होने का ठीकरा परीक्षक के ऊपर मढ़ता है, उसी प्रकार चुनाव में हारने वाला या हारने की संभावना वाला हर उम्मीदवार हार का ठीकरा ईवीएम, प्रशासन और चुनाव आयोग पर ही फोड़ता है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा में हारने के बाद कांग्रेस के कई नेता ईवीएम पर लगातार सवाल उठा रहे हैं। यहां तक कि एमपी के दो बार सीएम रह चुके और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने साफ-साफ कहा कि उन्हें तो ईवीएम पर भरोसा ही नहीं है।रविवार को अपनी हार स्वीकार करने वाले कमलनाथ ने भी पैंतरा बदला। भोपाल में सभी विजयी और पराजित उम्मीदवारों के साथ बैठक के बाद कमलनाथ ने आरोप लगाया कि चुनाव में हेराफेरी हुई है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने अपनी पार्टी के नेताओं को हिदायत दी कि हार को स्वीकार नहीं करना है. इस हार के लिए ईवीएम को जिम्मेदार ठहराना है।
कांग्रेस ने मंगलवार को भोपाल में अपनी हार का विश्लेषण करने के लिए विधायकों, हारे हुए उम्मीदवारों और सीनियर नेताओं की बैठक बुलाई थी। हारे हुए उम्मीदवारों से कहा गया कि वे हार के कारण बताएं। हर नेता अपनी अलग अलग रिपोर्ट बनाकर दे लेकिन रिपोर्ट आने से पहले ही कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने हार की वजह बता दी। दिग्विजय सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी  ईवीएम में गड़बडिय़ों की वजह से हारी, ईवीएम से छेडख़ानी की गई, कांग्रेस के वोट घटाए गए, भाजपा के वोट बढ़ाए गए और नतीजा कांग्रेस के ख़िलाफ़ रहा।
दिग्विजय सिंह ने कहा कि पोस्टल बैलट में कांग्रेस जीती, ईवीएम में बटन कांग्रेस के निशान के पास दबा और जीत गई भाजपा। दिग्विजय सिंह ने कहा कि ईवीएम में चिप लगी होती है, उनको हैक किया जा सकता है इसीलिए उनको ईवीएम पर बिल्कुल भरोसा नहीं है। मीटिंग के बाद कमलनाथ खुलकर नहीं बोले। उन्होंने कहा कि सबको पता है कि क्या हुआ, एक्जिट पोल भी तय थे और नतीजे भी।
कमलनाथ ने सवाल उठाया कि 10 घंटे चलने के बावजूद ईवीएम गिनती वाले दिन 99 परसेंट कैसे चार्ज नजऱ आई। कमलनाथ ने सवाल किया कि एक विधायक को अपने ही गांव में 5 वोट भी नहीं मिले, ये कैसे हो सकता है? कांग्रेस को हराया गया है, ईवीएम के जरिए साजिश हुई है, अब ईवीएम के इस्तेमाल का विरोध होना चाहिए। कांग्रेस विधायक फूल सिंह बरैया ने कहा कि भाजपा  ने बहुत चतुराई से, एक रणनीति के तहत काम किया, इसीलिए, सारी ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं की। बरैया ने कहा कि भाजपा ने कुछ सीटों पर विपक्ष को भी जिता दिया, तेलंगाना में कांग्रेस को जिता दिया जिससे कोई ईवीएम पर सवाल उठाए तो कह दें कि ईवीएम हैक हुई तो तेलंगाना में कांग्रेस कैसे जीत गई?
दिलचस्प बात ये है कि नतीजे आने के एक दिन बाद खुद कांग्रेस के नेता कह रहे थे कि उनका वोट बैंक इंटैक्ट है। चारों राज्यों को मिला दें तो कांग्रेस को भाजपा से ज़्यादा वोट मिले हैं। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने तो ट्वीट करके बताया कि कांग्रेस और भाजपा के वोट शेयर में कोई ख़ास अंतर नहीं है। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने आंकड़े भी गिना दिए कि कांग्रेस को भाजपा से दस लाख वोट ज़्यादा मिले।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूछा कि ईवीएम में गड़बड़ी थी तो कमलनाथ के छिंदवाड़ा में कांग्रेस सातों सीट कैसे जीत गई। दिग्विजय सिंह का ये कहना कि ईवीएम में कांग्रेस निशान का बटन दबा, पर वोट भाजपा  को पड़ा, उनकी हताशा दिखाता है। इसे कहते हैं- खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। शिवराज सिंह ने सही सवाल पूछा। अगर ईवीएम में गड़बड़ी थी तो कमलनाथ के इलाके में कांग्रेस सातों सीटें कैसे जीत गईं, कोई पूछे क्या तेलंगाना में कांग्रेस ईवीएम में गड़बड़ी करके जीती है?
कुछ महीने पहले कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत क्या ईवीएम में हेराफेरी करके हुई थी? अपनी हार को स्वीकार न करना दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की पुरानी आदत है। कांग्रेस जब तक अपनी हार के कारण का ईमानदारी से आत्मविश्लेषण नहीं करेगी, तब तक वो समझ ही नहीं पाएगी कि इन राज्यों में जनता ने कांग्रेस को वोट क्यों नहीं दिया। कांग्रेस को इस बात पर विचार करना चाहिए कि लोगों ने उनके वादों पर भरोसा क्यों नहीं किया और मोदी की गारंटी पर विश्वास क्यों किया। अगर इस बात को नहीं समझे, तो आगे भी कुछ नहीं कर पाएंगे और कांग्रेस का आकार और छोटा होता जाएगा।
गौरतलब है कि ईवीएम , प्रशासन और चुनाव आयोग का यह सिलसिला नया नहीं है. यह बहुत समय से चला आ रहा है और हर हारने वाली पार्टी को अपनी झेप छुपाने का यही सरल तरीका लगता है। भाजपा  कांग्रेस आरोपों पर आज भले ही मजाक उड़ा रही हो लेकिन ईवीएम पर अविश्वास का सबसे पहला दावा उसी के खाते में है। साल 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से ईवीएम का इस्तेमाल भारत में चुनाव कराने के लिए हो रहा है। बात सन् 2009 की है। तब सत्ता में कांग्रेस थी और भाजपा कई राज्यों में चुनाव हार रही थी।
उस वक्त भाजपा के पुरोधा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने चुनाव आयोग से लेकर ईवीएम पर तमाम सवाल खड़े कर दिए थे। यही नहीं, भाजपा नेता और मौजूदा सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव ने तो बाकायदा ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से लोकतंत्र को खतरे पर एक किताब तक लिख डाली थी। वक्त बदला और भाजपा सत्ता में आई तो कांग्रेस के सुर बदल गए। अब कांग्रेस से लेकर सभी विरोधी पार्टियां ईवीएम का विरोध कर रही हैं, यानी जो चुनाव हारता है, वह सबसे ज्यादा आरोप इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर ही लगाना शुरू कर देता है।
मजेदार वाकया तो सन 2009 का एक और भी है। 2009 में चुनाव हारने के बाद भारतीय जनता पार्टी जब पूरे देश में ईवीएम पर सवाल उठा रही थी, ठीक उसी वक्त उड़ीसा कांग्रेस के नेता जेबी पटनायक ने ईवीएम पर सवाल खड़े कर दिए। दरअसल उड़ीसा में कांग्रेस चुनाव हार चुकी थी और वहां पर बीजू जनता दल सरकार बना रही थी। चुनाव हारने पर कांग्रेस ने सबसे पहले ठीकरा ईवीएम पर ही फोड़ा था। एक और मजेदार वाकिया 2014 का भी है। हालांकि यह बात दीगर है जब 2014 में हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की बंपर जीत हुई, तो यही नेता इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर पूछे गए सवालों से कन्नी काट गए। तब  असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए और कहा कि भाजपा की जीत ईवीएम की वजह से हुई है।
ईवीएम पर सवाल उठाने वालों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। देश की बड़ी-बड़ी पार्टियां जब चुनाव हारती रहीं तो सबसे पहले उन्होंने खुद का आत्ममंथन करने की बजाय ईवीएम पर ही सवाल दागने शुरू किए। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो 2017 में चुनाव आयोग के खिलाफ ऐसा बिगुल फूंका कि केजरीवाल के विधायक सौरभ भारद्वाज ने खुलेआम ईवीएम को हैक करने का डेमो तक कर डाला। भारद्वाज ने सदन में बताया कैसे 5-स्टेप में ईवीएम को हैक किया जा सकता है। दरअसल केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पंजाब और गोवा में चुनाव हार चुकी थी। केजरीवाल ने चुनाव आयोग पर भारतीय जनता पार्टी के एजेंट के तौर पर काम करने का आरोप लगाया था हालांकि आयोग ने सारे आरोपों को खारिज किया था।
2017 में हुए विधानसभा चुनावों में हार का मुंह देखने वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने सबसे पहले आरोप ईवीएम पर ही लगाया। मायावती ने एक बयान मैं कहा था कि 2017 में भारतीय जनता पार्टी सिर्फ ईवीएम में हुई छेडख़ानी की वजह से ही जीती है। मायावती के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी ईवीएम पर ही आरोप लगाए थे कि केंद्र में भाजपा की सरकार होने के चलते ईवीएम में छेडख़ानी हुई नतीजतन उनकी पार्टी चुनाव हार गई। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के अलावा राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने भी ईवीएम पर जोरदार हमला किया। जब यह नेता अपनी पार्टी की सीटें गंवाने लगे, तो आरोप ईवीएम पर धड़ाधड़ आने लगे।
चुनाव आयोग से सेवानिवृत्त हुए एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि ईवीएम पर उठाए जाने वाले सवाल पूरी तरीके से निराधार हैं। अधिकारी का कहना है कि जब राजनीतिक पार्टियां चुनाव हारती हैं तो उनको हार के कारण तलाशने चाहिए न कि ईवीएम पर सवाल उठाना चाहिए। चुनाव आयोग से सेवानिवृत्त हुए अधिकारी इस बात से जरूर नाराज हैं कि असम में जो घटना हुई, वह नहीं होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि ईवीएम की सुरक्षा के साथ-साथ जनता में भरोसा जगाना चुनाव आयोग का काम है। उन्होंने कहा राजनीतिक पार्टियों की प्रतिक्रियाओं से प्रभावित ना होकर चुनाव आयोग को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन करते रहना चाहिए।
-अशोक भाटिया
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