अपनी पावन संस्कृति के कुछ अलंकारों पर चिंतन करे जो मानव समाज को शिक्षा देने के लिए है। शंकर भगवान के सिर से पवित्र गंगा निकलती है अर्थात हमारे मस्तिष्क से भी पवित्र पावन शुद्ध विचार ही निकलने चाहिए। गंगा ज्ञान की प्रतीक है, जो समस्त मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है।
शिवजी के सिर पर चन्द्रमा है, चन्द्रमा शीतलता, शान्ति और सरसता का प्रतीक है। कैसी भी विपरीत परिस्थितियां क्यों न आ जाये तो भी मानसिक संतुलन कायम रहे। विवेक से धैर्यपूर्वक समस्या का सामना करे। क्रोध और अविवेक के भाव न आने दें। भगवान के सच्चे भक्तों को भी मानसिक संतुलन नहीं खोना चाहिए।
शंकर जी के गले में विषधर भी लिपटे हैं। यह उनकी कला है कि दुष्ट प्रवृत्ति के जीवों को भी वश में कर उनसे भी मनचाहा कार्य करा लेते हैं। अपने प्रभाव और क्षमता से दुष्टों को भी सुधार कर अपने अनुरूप सज्जन बना लेना चाहिए। भगवान शंकर शरीर में भस्म रमाते हैं, नरमुंडों की माला पहनते हैं और मरघट में रहते हैं।
इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि यह शरीर एक दिन भस्म के रूप में बदल जाना वाला है। अत: मौत को सदा याद रखो, जो मौत सदा याद रखता है वह पाप, अत्याचार, अन्याय से बचकर श्रेष्ठ जीवन जीता है।