शास्त्र कहते हैं मन को वश में करो और मनुष्य कहता है कि मन बहुत चंचल है। यह प्रयास करने पर भी चलायमान रहता है, स्थिर हो ही नहीं पाता। जब उसे यह ज्ञान होता है कि मन को वश में करने पर ही परमात्मा के दर्शन हो पायेंगे तो वह उसे वश में करने के लिए हठ क्रियाओं का अवलम्ब लेता है।
मनुष्य को यह ज्ञान होना चाहिए कि मन का सबसे बड़ा विकार अहम् है। हठ कर्मों से अहम् और बढ़ जाता है। हठ कर्मों में प्रवृत व्यक्तियों को यह अहंकार हो जाता है कि मैंने घोर तपस्या करके ये सिद्धियां प्राप्त की हैं। उन सिद्धियों का प्रदर्शन कर वह लोगों से प्रशंसा प्राप्त करने की चेष्टा करता है। उससे उसका अहम् और बढ़ जाता है।
मन बुद्धि द्वारा अपनाये गये हठ कर्म आत्मा के बंधन को समाप्त नहीं करते, बल्कि इन बंधनों में और वृद्धि कर देते हैं। हठ कर्म कभी सच्ची मुक्ति का साधन नहीं बन सकते। इनका फल भुगतने के लिए जीव आवागमन के चक्र से बंधा रहता है।