स्मरण रहे कि निद्रा और जागरण का सम्बन्ध मात्र देह से ही नहीं है। आप रात्रि में सो जाते हैं और प्रभात में जग जाते हैं, परन्तु प्रभात होने पर क्या आप भीतर से भी जाग पाते हैं। भीतर से जागना ही महत्वपूर्ण है।
देह से जागना तो सहज बात है। मनीषी भीतर की निद्रा तोड़ने का संदेश देते हैं, क्योंकि भीतर के जागरण के बिना बाहर का जागरण कोई महत्व नहीं रखता। भीतर का जागरण मूल्यवान है। भीतर से एक बार जाग जाये तो आप जीवन के परम प्रयोजन को जान पायेंगे। भीतर से नहीं जागे तो केकड़ों को ही हीरे मान कर गले से चिपकाये रहोगे।
आन्तरिक निद्रा से जागना और दूसरों को जगाना महान उपकार का कार्य है, क्योंकि जो जाग जाता है वह पाता है कि वह अपने भीतर ही परम समृद्ध है, जो जाग जाता है उसके समस्त क्लेश, समस्त कष्ट और सारे भय भाग जाते हैं।
आप भीतर से बेहोश हैं, निद्रा में हैं इसीलिए आप संक्लेशित हैं। आपकी चेतना प्रसुप्त है। इसीलिए आप दुखी और भयभीत हैं। जागते ही आपको सच्चाई का ज्ञान हो जाता है। पिछला सब कुछ सपना सा प्रतीत होने लगता है और सपने की कैसी समृद्धि और निर्धनता, कैसा भय और कैसी निडरता, संसार के सारे भौतिक पदार्थ निस्सार प्रतीत होने लगते हैं, फिर दुख और भय का नामोनिशान ही नहीं आनन्द ही आनन्द है।