ओइम् भुर्भुव: स्व:……वेद के इस पवित्र गायत्री मंत्र की व्याख्या में कितने ग्रंथ आज तक लिखे जा चुके हैं और अभी कितने और लिखे जायेंगे, परन्तु इस मंत्र की पूर्ण रूपेण व्याख्या फिर भी नहीं हो सकी, क्योंकि गायत्री मंत्र चारों वेदो का सार है।
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जिन्हें गायत्री मंत्र का पवित्र विचार मन में आये और वे बड़े-बड़े ग्रंथों को समझने में स्वयं को असमर्थ पाते हों वे गायत्री मंत्र से ही पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु उन्हें भी गायत्री मंत्र बिना भावार्थ समझे, जाप अधिक लाभ नहीं पहुंचाता। उन्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि मैं भगवान के समक्ष बैठा हुआ क्या कह रहा हूं, क्या-क्या प्रार्थना कर रहा हूं।
अपने प्रियतम से क्या निवेदन किया जा रहा है। इसलिए गायत्री मंत्र का भावार्थ तो उन सभी को जानना चाहिए जो उसकी साधना करना चाहते हों। गायत्री मंत्र आत्म समर्पण का मंत्र है। इसलिए वह समर्पण कर भाव गायत्री मंत्र के जाप साधक में मन में होना ही चाहिए, जिस प्रकार एक युवती विवाह मंडल में पवित्र अग्रि के सामने बैठी हुई पूर्ण निश्चय के साथ अपने पति देव के आगे अपने आपको समर्पण करते हुए पति को अपना वर बनाती है।
इसी प्रकार गायत्री मंत्र का जाप करने वाला पुरूष अपने प्रियतम प्रभु के सामने आत्म समर्पण करता हुआ प्रभु से यही कहता है कि मैं तेरा हो चुका। मेरी बुद्धि की नकेल तेरे हाथ में है, इसलिए इसे केवल अपनी ओर ले चल, अपने में ही स्थित रहने दो ताकि यह पाप बुद्धि न बन जाये।