श्रीराम का जीवन चरित एक ओर मर्यादा का प्रतीक है तो दूसरी ओर अदम्य साहस एवं शौर्य का, जिन्होंने नारायण के अवतार के रूप में परिवार एवं समाज के हर रिश्तों के आदर्श स्थापित किये, जिनके नाम का जाप मात्र भारतीय जनमानस को युगों-युगों से शीलता प्रदान करता है, जिनका शौर्य निर्बल को भी सबल बनाता है।
श्रीराम अयोध्यापुरी के सर्वाधिक प्रिय राजकुमार ही नहीं थे, बल्कि जहां भी गये वहां प्रेम और सौहार्द की रस धार बहाते रहे। वे केवल अपने पिता राज दशरथ के प्राण प्रिय ही नहीं थे, बल्कि तीनों मां के आंखों के तारे थे। अपने समस्त गुरूजनों के कुशाग्र प्रिय शिष्य थे, जिन्होंने हर रिश्ते में आदर्श दृष्टान्त प्रस्तुत किया, जिन्होंने समाज के सम्मुख भ्रातृ प्रेम का अद्भुत उदाहरण रखा। ऐसे श्रीराम के जन्म से केवल माता-पिता के हृदय में ही नहीं सम्पूर्ण अयोध्या नगरी में सुख का उजियारा छा गया। राम सामाजिक सौहार्द के भी प्रतीक थे, जिन्होंने बिना संकोच शबरी के झूठे बैर खाये।
आकर्षक व्यक्तित्व, सामाजिक सौहार्द, अपार करूणा के स्वामी अद्वितीय योद्धा के पराक्रम और बाहुबल के अनेक उदाहरण मिलते हैं, उनकी शासन व्यवस्था भी अद्वितीय थी, तभी तो उनके शासन को लगभग दस लाख वर्ष हो जाने के पश्चात भी अच्छे शासन की राम राज्य के रूप में कल्पना की जाती है।