हम शरीर की बाह्य सज्जा के प्रति सदा जागरूक रहते हैं। सदैव यह प्रयास करते हैं कि हमें देखकर सामने वाला हमसे प्रभावित हो। सापेक्ष इसके हम आन्तरिक सौंदर्य की उपेक्षा करते हैं, जबकि अधिक आवश्यकता अपने आन्तरिक क्षेत्र को उपयुक्त आभूषणों से युक्त करने की है। इसके अभाव में अधिकांश मनुष्य भीतर ही भीतर दग्ध होते रहते हैं, व्याकुल रहते हैं, अशांत रहते हैं, जबकि बाह्य साधनों की प्रचुरता में भी उनकी व्याकुलता में कोई कमी नहीं आ पाती। इसलिए हमें बाह्य सज्जा में ही नहीं उलझे रहना चाहिए, बल्कि हमें अपने आन्तरिक जगत को संवार कर जीवन में पूर्णता लाना चाहिए। जो आन्तरिक सज्जा को महत्व देते हैं वे धर्म पारायण, कर्त्तव्य पारायण और प्रभु विश्वासी होते हैं। इसी कारण वे निर्भीक, निश्चिंत और सबके प्रति सद्भावनाओं से पूर्ण होते हैं। हमें भी ऐसे सत्पुरूषों का अनुकरण करना चाहिए। इन्हीं गुणों के कारण कुछ महान व्यक्तित्व हजारों वर्षों के पश्चात आज भी अनुकरणीय एवं श्रद्धेय बने हुए हैं। जन-जन के लिए प्रकाश स्तम्भ का कार्य कर रहे हैं, उनके प्रति जन-जन में श्रद्धा है, आदर है और वे प्रशंसा पुष्पों से पूजे जाते हैं। उनका अनुसरण हमें भी वही स्थान दिला सकता है।