जो सांसारिक पदार्थों में ही आसक्त है उसके लिए धन ही सब कुछ है। चरित्र का उसके यहां कोई मूल्य नहीं, धन ही उसका चरित्र है। कितना झूठा चिंतन है यह बिना चरित्र के तो धन भी अभिशाप बन जाता है।
सम्मान के स्थान पर अपमान और सुख के स्थान पर दुख देता है। ऐसे व्यक्ति के द्वारा अपनी अज्ञानताओं के कारण भौतिक उपलब्धियों को ही जीवन की सफलता मान लिया गया है। यही हमारे दुखों और अशान्ति का कारण है।
नीति-अनीति किसी के भी द्वारा जो सफल हो गया आज के समाज में उसी की प्रशंसा होती है, उसे ही सम्मान मिलता है, जबकि व्यक्ति के मूल्यांकन की कसौटी उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को माना जाना चाहिए। हमारा जीवन केवल अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए नहीं दूसरों के लिए भी है। जीवन को परमार्थ में भी लगाना चाहिए।
हम केवल अपने लिए नहीं दूसरों के लिए भी जीये। अपनी कमाई आप ही खा जाने वाला चोर है। जिसे हम अपना कमाया मान बैठे हैं, वास्तव में वह श्रेष्ठ सत्पुरूषों के श्रम, त्याग और विशेष रूप से प्रभु कृपा का ही फल है। हमारा तो उसमें थोडे से परिश्रम का सहयोग मात्र है। इसलिए मिली उपलब्धियों का श्रेय स्वयं लेने की भूल कदापि न करें।