कितना अदभुत है यह संसार और संसार के ये लोग जो कर्म भी अपनी मर्जी से करना चाहते हैं और फल भी अपनी मर्जी का भोगना चाहते हैं। वे इस तथ्य को समझने का प्रयास नहीं करते कि जिस प्रभु ने जगत की रचना की है उसने इसके संचालन के लिए कर्म और फल का नियम लागू किया है।
वे इस घोर अज्ञानता के शिकार है कि न हमें देखने वाला कोई है और न ही कोई हमसे किये हुए कर्मों का हिसाब लेने वाला है। उसे यह ज्ञान ही नहीं कि वह जो भी कर रहा है वह सब तत्काल उसके चित्त पर अंकित होता जा रहा है ‘चित्त’ वह तत्व है जो शरीर के जलने के बाद भी नहीं जलता, वह सदैव सूक्ष्म शरीर में विद्यमान रहता है।
जैसे आधुनिक काल में कम्प्यूटर की मेमोरी में सब कुछ है समय पड़ने पर सब सूचनाएं, सब आंकड़े आपको उपलब्ध होते रहते हैं। आप उनका उपयोग करते रहते हैं। इसी प्रकार चित्त में आपके कर्म का लेखा उपलब्ध है, आपको उनके अनुसार उसका अच्छा-बुरा फल मिलता रहता है। सह परमात्मा की व्यवस्था है और इस व्यवस्था में न कोई भेदभाव है न कोई सिफारिश न किसी प्रकार की छूट का प्रावधान है। इसलिए हे मानव इस सर्व श्रेष्ठ योनि का सदुपयोग कर अच्छे कर्म कर किसी का भी अहित न कर किसी के साथ वह व्यवहार कदापि न करे जो अपने लिए पसंद नहीं।