Saturday, June 15, 2024

अनमोल वचन

उदर पूर्ति के लिए पाव डेढ पाव आटा, तन ढकने के लिए चार गज कपड़ा, सोना साढ़े तीन हाथ भूमि में, जाना संसार से खाली हाथ और जलना चिता पर अकेले। फिर इतनी सी भोग सामग्री के लिए इतना अधिक हाय-हाय और भागदौड़ क्यों और इससे लाभ क्या।

हां एक लाभ हो सकता है कि जिस मार्ग से निकलोगे लोग कहेंगे ‘सेठ जी नमस्ते, लाला जी सलाम, सेठ जी राम-राम और इन सम्बन्धों से आप में अहंकार ही बढ़ सकता है।

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

मानव तो निर्धन भी है, किन्तु उसे कोई नमस्ते नहीं करता, सेठ जी, लाला जी कोई नहीं कहता। इसलिए धन के अहंकार का त्याग करो तथा मिले हुए हर प्रकार के सामर्थ्य का सदुपयोग करो। मनीषियों का वचन है कि ‘जब सरोवर जल से लबालब भर जाता है, तब जल को निकाल देना ही हितकर है। जब हृदय में क्षोभ और शोक भर जाये तो अश्रुपात से ही मन को शान्ति मिलती है। जब किसी के पास उसकी आवश्यकता से अधिक धन हो जाये तो उसे परोपकार में लगा देना ही श्रेयष्कर है।

आवश्यकता से बहुत अधिक लक्ष्मी दुर्लक्ष्मी बनकर मनुष्य को पतित कर देती है। मिली हुई लक्ष्मी का अपनी आवश्यकता की पूर्ति में उपयोग करे, अपनी आवश्यकताओं से अधिक को दान करे पुण्य कार्यों में लगाये अन्यथा वह विनाश को ही प्राप्त होगी।

Related Articles

STAY CONNECTED

74,188FansLike
5,329FollowersFollow
60,365SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय